पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/२३९

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[ १४८ ] दारा की न दौर यह रारि नहीं खजुवे' को बाँधिवो नहीं है कैधौं मीर सहबाल को । मठ विश्वनाथ को न वास ग्राम गोकुल को देवी को न देहरा न मंदिर गोपाल को ॥ गाड़े गढ़ लीन्हे अरु वैरी कतलाम कीन्हे ठौर ठौर हात्तिल उगाहत है साल को । बेड़ति है दिल्ली सो सम्हार क्यों न दिल्लीपति धक्का आनि लाग्यो सिवराज महाकाल को ॥ ३६॥ ___ गढ़न गँजाय गढ़धरन सजाय करि छाड़े केते धरम दुवार दैभिखारी से | साहि के सपूत पूत वीर सिवराज सिंह केते गढ़धारी किये वन बनचारी से ॥ भूपन वखानै केते दीन्हे बंदीखाने सेख सैयद हजारी गहे रैयत वजारी से । महता' से मुगल महाजन से महाराज डाँड़ि लीन्हे पकरि पठान पटवारी से ॥३७॥ १ खजुए में शाहशुजा औरंगजेब ने हारा था । __२ इसका इतिहास में नाम नहीं मिलता, कोई छोटा सर्दार होगा । लाल कवि ने इसका वर्णन किया हैं । इसका ठीक नाम शहबाज़ खाँ था । ३ चौथ, सरदेशमुखी आदि । ४ किलों को गुजवा कर । ५ यहाँ पर प्रताप राव गूजर द्वारा वहलोल खा के छोड़े जाने का इशारा समझ पड़ता है । सन् १६७३ को घटना हैं । ६ एक हजार सिपाहियों का अफसर । ७ महतों, मुसद्दी । ८ कलवार । ९ पूर्णोपमा ।