पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/२३६

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[ १४५ ] . औ सँहारे पुर धाय के । भूपन भनत तुरकान दलथंभ' काटि अफजल मारि डारे तलब वजाय के ॥ एदिल सौ बेदिल हरम कहें बार वार अब कहा सोवो सुख सिंहहि जगाय के। भेजना है भेजो सो रिसालैं3 सिवराज जू की वाजी करनालैं परनाले पर आय के ।। ३०॥ मालती सवैया साजि चमू जनि जाहु सिवा पर सोवत जाय न सिंह जगायो। तासों न जंग जुरौ न भुजंग महा विप के मुख मैं कर नावो ॥ भूषन भाषत वैरिवधू जनि एदिल औरँग लौ दुख पायो । तासु सलाह कि राह तजी मति, नाह दिवाल कि राह न धावो ॥ ३१ ॥ छप्पय विज्ञपूर५ विदनूर सूर सर धनुप न संधहि । मंगल विनु १ दल थंभ का कोई पता नहीं लगता। स्यात् यह रणथंभ हो, जहाँ का राजा हन्मोर देव प्रसिद्ध हो गया है अथवा दल ( फौज ) का थामनेवाला (आधार ) सेनापति। २ टंका। ३ खिराज । • ४ यह छंद स्फुट कविता से आया है । .... ५ किसी विशपुर का पता नहीं लगता । शायद यह विजेपुर ( बोजापुर ) हो । ६ यहाँ एक रानी राज्य करती थी। उसके कारपरदाज़ उससे विगढ़े हुए थे।