पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/२३४

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१४३ ] घन भारे हैं। इतै सिवराज जूके छूटे सिंहराज औ विदारे कुंभ करिन के चिक्करत कारे हैं ।। फौजें सेख सैयद मुगल औ पठानन की मिलि इखलासं' काहू मीर न सम्हारे हैं। हद्द हिंदु- वान की विहद्द तरवारि राखि कैयो वार दिली के गुमान झारि डारे हैं ।। २५ ॥ ___ जीत्यो सिवराज सलहेरि को समर सुनि सुनि असुरन के सु सीने धरकत हैं । देवलोक नागलोक नरलोक गावे जस अजहूँ लौ परे खग्ग दाँत खरकत हैं । कटक कटक काटि कीट से उड़ाय केते भूपन भनत मुख मोरे सरकत हैं। रनभूमि लेटे अधकटे फरलेटे परे रुधिर लपेटे पठनेटे फरकत हैं ।। २६ ।। मालती सवैया केतिक देस दल्यो दल के बल दच्छिन चंगुल चापि कै चाख्यो । रूप गुमान हखो गुजरात को सूरति को रस चूसि कै नाख्यो ॥ पंजन पेलि मलिच्छ मले सब सोई बच्यो जेहि १ सलहेरि के युद्ध में मुगलों का सेनापति इखलास खाँ था। किसी किसो प्रति में अफपाल खा इसके स्थान पर लिखा है। वह बीजापुरी सरदार था किन्तु यहाँ सलहेरि में लड़नेवाले मुगल सरदार का वर्णन है । २ मुसल्मान ( टाड देखिए )। ३ सन् १६६४ और १६७० ई० में शिवाजो ने सूरत लूटा । ४ गुजराती भापा में फेंक दिया।