पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/२३३

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[ १४२ ] दावा पातसाहन सों कान्हो सिवराज वीर जेर कीन्हो देस हद वाँध्यों दरवारे' से। हठी मरहठी तामै राख्यो ना मवासरे को छीने हथियार डोलें बन बनजारे से ।। आमिप अहारी माँसहारी दै दै तारी नाचे खांड़े तोड़ किरचे उड़ाये सब तारे से। पील सम डील जहाँ गिरि से गिरन लागे मुंड मतबारे गिरें झुण्ड मतवारे से ।। २३ ॥ छूटत कमान और तीर गोली बानन के मुसकिल होति मुर- चान हू की ओट में । ताही समै सिवराज हुकुम के हल्ला कियो दावा वांधि पर हला बीर भट जोट में ।। भूपन भनत तेरी हिम्मति कहाँ लौं कहाँ किम्मति इहाँ लगि है जाकी भट झोट में। ताव दै दै मृछन कँगूरन पै पाँव दै दै अरि मुख घाव दे दै कृदै परें कोट: मैं २४ ॥ . उतै पातसाह जूके गजन के ठट्टछुटे उमड़ि घुमड़ि मतवारे परमेश्वर के कोई लदल नहीं है, नुहम्मद परमेश्वर का वसीगी है। मुसलमानों के अनु- सार जो कोई ये दोनो वातें मानता हो, वहो मुसल्मान है। 1 दरवार से, दरवार हो , खास दरवार है। २ किला, मोर्चा । ३ पूर्णोपमा अलंकार । ४ तोप । ५ झुरमुट, समूह । ६ इस छंद में पूर्ण वीर रस एवं पदार्थावृत्त अलंकार है ।