पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/२३

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
[ १४ ]

जहाँगीर जस लियो पीठि को भार हटायो। साहजहाँ करि न्याव ताहि पुनि माँड़ चटायो । बलरहित भई पौरुप थक्यो दुरी फिरत वन स्यार डर । औरंगजेब करिनी सोई ले दीन्हीं कबिराज कर ।। इस मँडौवामें किसी कवि का नाम नहीं और न यही ध्यान में आता है कि इतना बड़ा बादशाह किसी कवि को ऐसी चुड़ी हस्तिनी देता। संभव है कि किसी उर्दू या फारसी के कवि को बादशाह ने कोई हस्तिनी दी हो, क्योंकि कवि यह नहीं कहता कि स्वयं उसी ने वह करिणी पाई ; अथवा यह भी संभव है कि औरंगज़ेव की कट्टरता से नाराज़ होकर किसी ने उसका उपहास करने को यो भी भँडौवा बना डाला हो । अस्तु । ____शिवाजी की राजधानी में पहुँच कर भूपणजी संध्या को एक 'देवालय में ठहरे । कुछ रात बीते महाराज शिवाजी भी अकेले ही वहाँ पूजनार्थ पहुँचे । भूषण से उन्होंने पूछा और हाल जान कर कहा कि शिवराज के दरबार में पहुँचने के पूर्व हमें भी कोई छंद सुनाइए । भूषण ने बड़ी कड़क से शि० भू० का छं० नं०५६ पढ़ा। शिवाजी ने उनकी प्रशंसा कर उस छ० को फिर सुनना चाहा और भूषण ने कह सुनाया । इसी भाँति १८ बार इसी छंद को पढ़कर भूषणजी थक गए और १९ वीं वार आगंतुक • कोई कोई कहते हैं कि १८ नहीं ५२ बार भूषण ने ५२ भिन्न भिन्न छंद पढ़े और वे ही छंद शिवाबावनी के नाम से प्रसिद्ध हुए, पर यह नितांत अशुद्ध है (शिवाबावनी संबंधी भूमिकांश देखिए)। कुछ लोग यह भी कहते हैं कि एक ही