पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/२२४

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[ १३३ ] सुखद बसै को सकल सुमन महि ? । अष्ट सिद्धि नव निद्धि देत माँगे को सो कहि ? ॥ जग बूझत उत्तर देत इमि कवि भूपन कवि कुल सचिव । दच्छिन नरेस सरजा सुभट साहिनंद मकरंद सिव ॥१॥ कवित्त-मनहरण साजि चतुरंग वीर रंग में तुरंग चढ़ि सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत है। भूपन भनत नाद विहद नगारन के नदी नद मद गव्वरन' के रलत है । ऐल3 फैल खेल-भैल खलक मैं गैल गैल गजन की ठेल पेल सैल उसलत है। तारा सो तरनि धूरि धारा मैं लगत, जिमि थारा पर पारा पारावार यों हलत है ॥२॥ ___बाने फहराने घहराने घंटा गजन के नाहीं ठहराने राव राने देस देस के। नग भहराने ग्राम नगर पराने सुनि बाजत निसाने सिवराज जू नरेस के ॥ हाथिन के हौदा उकसाने १ माल मकरंद। २ गर्व-धारियों के। ३ अहिली, यात विशेष । ४ खलभल। ५ समुद्र। ६ एक झंडोदार अस्त्र । ७ निशान का अर्थ झंडा है; पर भूपणजो ने उसे डंका के अर्थ में लिखा है। ८ सरदार कवि ने इसके द्वितीय पद के अंतिम माग को यों लिखा है-“सुनि वाजत निशाने भाउ सिंह, नरेस के" और तीसरे पद का प्रथमार्द्ध यो---"ककुभ