पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/२२०

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[ १२९ ] जल में बिलीन, क्यों बराबरी करत हैं ? ॥ सवते' चलाक चित तेऊ कुलि आलम के रहें उर अंतर मैं धीर न धरत हैं । जिन' चढ़ि आगे को चलाइयतु तीर, तीर3 एक भरि तऊ तीर पीछे ही परत हैं ॥ ३७० ॥ ग्रन्थालंकार नामावली । गीतिका छंद उपमा अनन्वै कहि बहुरि उपमा प्रतीप प्रतीप । उपमेय" ___ उपमा है बहुरि मालोपमा कवि दीप ।। ललितोपमा रूपक बहुरि परिनाम पुनि उल्लेख । सुमिरन भ्रमौ संदेह सुद्धापन्हुत्यो सुभ वेख ।। ३७२ ।। . हेतृअपन्हुत्यौ बहुरि परजस्तपन्हुति जान । सुभ्रांत पूर्ण अपन्हुत्यो छेकाअपन्हुति मान ॥ वर कैतवापन्हुति गनौ उतप्रेक्ष बहुरि वखानि । पुनि रूपकातिसयोक्ति भेदक अतिसयोक्ति सुजानि ।। ३७२ ॥ अरु अक्रमातिसयोक्ति चंचल अतिसयोक्तिहि लेखि । अत्यं- तअतिसैउक्ति पुनि सामान्य चारु बिसेखि ॥ तुलियोगिता दीपक अवृति प्रतिवस्तुपम दृष्टांत । सु निदर्सना व्यतिरेक और सहोक्ति वरनत शांत ।। ३७३ ।। १ अनुप्रास एवं प्रतीप । २ यमक एवं अत्युक्ति । ३ जितनी दूर पर जाकर तोर गिर पड़े। ४ यह छब्बोंस कला का छंद होता है। इसके प्रत्येक पद के अंत में लघु अक्षर होता है। ५ उपमेयोपमा।