पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/२२

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[ १३ ] और वहाँ कुछ काल तक रहकर शिवाजी की प्रशंसा के बहुत से छंद रचकर अपने घर वापस गए । अनन्तर वे दिल्ली में औरंगजेब के दरबार में पहुँचे। वहाँ जो घटनाएँ घटी, उनके विषय में वखर-कार यों लिखता है-"भूषणजी ने औरंगजेब से यह कहा कि मेरे भाई (चिंतामणिजी ) की शृङ्गार रस की कविता सुनकर आपका हाथ ठौर कुठौर पड़ता होगा; पर मेरा वीर काव्य सुनकर वह मोछों पर पड़ेगा। सो पहले पानी से धोकर हाथ शुद्ध कर लीजिए"। इस पर बादशाह ने कहा कि यदि हाथ मूंछ पर न गया, तो तुम्हें मृत्यु दंड मिलेगा। इतना कहकर हाथ धोकर वह छंद सुनने लगा। भूषण ने भी वीर रस के ऐसे ऐसे बढ़िया छंद शिवाजी की प्रशंसा के पढ़े कि उनमें शत्रुयश का गान होते हुए भी औरंगजेब का हाथ मूंछ पर गया। यह हाल महाराज शिवाजी को सुन पड़ा। तब उन्होंने भूषण को फिर अपने दरवार में बुलाया और वे वहाँ पधारे । यह कथा कुछ आश्चर्यमयी अवश्य है। किंतु असंभव नहीं। मुग़ल दरवार में हिन्दी कवि भी मान पाते थे । कालिदास त्रिपाठी ने औरंगजेब के दरवार में जाकर उसकी प्रशंसा के छंद बनाए थे, जिनमें से एक 'मिश्रबन्धुविनोद' में भी लिखा है। बखर के उक्त कथन से सिद्ध है कि भूषण शिवाजी के यहाँ जाकर पीछे से औरंगजेब के यहाँ गए थे। एक अँडौवा भी सुना गया है जो यों है-

तिमिरलंग लइ मोल रही बावर के हलके। .

चली हुमाऊँ संग गई अकबर के दल के ॥