[ १२८ ] | तुव जो करता इनको धुव जो | गुरता तिनको गुरु भूपन दानि वदो गिरजा यिव है। हुव जो | हरता रिनको' तर भूपन दानि बडो सिरजा छिच है। भुव जो भरता दिनको नर भूपन दानि बढ़ो सरजा सिब है । करता इनको भरु भूपन दानि बढ़ो बरजा निव है ३६८ संकर लक्षण-दोहा भूपन एक कवित्त मैं सूपन होत अनेक । संकर ताको कहत हैं जिन्हें कवित की टेक ॥ ३६९ ।। उदाहरण-मनहरण दण्डक ऐसे वाजिराज देत महाराज सिवराज भूपन जे वाज की समाजै निदरत हैं । पौन' पाय हीन, हग बूंघट में लीन, मीन १(औरों के ) कर्ज को। २ कल्प वृक्ष । ३ रचा हुआ, पैदायशी। ४ छीव, उन्मत्त। ५ वर्तमान समय का। ६ वर जानिव है; वड़ा जानकार ( शता) है। ७ अलंकार । ८ अनुप्रास, ललितोपमा, एवं प्रतीप अलंकार । ९ अनुप्रास एवं अधिक तद्रूप रूपक ।
- संसृष्टि में विविध अलंकार एक ही स्थान पर होकर भी तिलतन्दुलवत् अलग
रहते हैं, किन्तु संकर में नीरक्षीरवत् मिले होते हैं। संसृष्टि आपने नहीं कही है। जो संकर के उदाहरण दिये हैं वह वहुधा संसृष्टि के हैं ।