पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१९२

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[ १०१ ] राम युधिष्टिर के बरने बलमीकिहु व्यास के अंग सोहानी ।। भूपन यो कलि के कबिराजन राजन के गुन पाय नसानी । पुन्य चरित्र' सिवा सरजा सर न्हाय पवित्र भई पुनि बानी ।।२९०।। ___यों सिर पै छहरावत छार हैं जाते उठे असमान बगरे । भूपन भूधरऊ धरके जिनके धुनि धकन यों चल रूरे ॥ ते सरजा सिवराज दिए कविराजन को गजराज गरूरे । सुंडन सौ पहिले जिन सोरिख के फेरि महामद सों नद पूरे ।। २९१ ॥ __श्री सरजा सलहेरि' के जूझ घने उमरावन के घर घाले । कुंभ चदावत सैद पठान कवंधन धावत भूधर हाले । भूपन यों सिवराज कि धाक भए पियरे अरुने रँग वाले । लोहे कटे लपटे बहु लोहु भए मुँह मीरन के पुनि लाले ।। २९२ ॥ यो कवि भूपन भापत है यक तो पहिले कलिकाल कि सैली । १स को पढ़कर तुलसीदासजी की- "मगत हेतु विधि भवन विहाई । नुमिरत मारद आवति धाई ॥" "राम चरित सर विनु भन्दवाए। सो श्रम जाय न कोटि उपाए. ॥ इत्यादि चीपाश्यों का स्मरण हो आता है। इस विषय में हमने अपने विचार सरस्वती भाग १ संख्या १२ में "हिंदी का काव्य (आलोचना)" शीपंक निबंध में प्रकट किए हैं। विषयी राजाओं के कारण लोभी कवियों ने नायिका इत्यादिक विषयों पर काव्य कर सरस्वती देवी को अपवित्र सा कर दिया था। २ छद नं० ९७ का नोट देखिए । ३ लहू; रुधिर ।