पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१९

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[ १० ] से विद्याध्ययन में बहुत चित्त लगाया और वे थोड़े ही दिनों में .. कविता करने लगे। ___ इसके बाद वे चित्रकूटाधिपति हृदयराम के पुत्र रुद्रराम सोलंकी के आश्रय में कुछ दिन रहे। इनकी कवित्व शक्ति से प्रसन्न हो रुद्रराम ने इन्हें सन् १६६६ के लगभग "कविभूषण" की उपाधि दी और तभी से ये भूपण कहलाने लगे, यहाँ तक कि इनके मुख्य नाम का अब पता भी नहीं लगता (शि० भू० छंद २८ देखिये )। जान पड़ता है कि पहले भी ये अपना उपनाम भूषण रखते थे और यहो इन्हें उपाधि भी मिली। रुद्रराम सोलंकी का पता तो इतिहासों में नहीं लगता, किन्तु इनके पिता हृदयराम का लगता है। आप गहोरा के राजा थे और आप के राज्य में १०४३३ ग्राम थे एवं बीस लाख वार्षिक आय थी। गहोरा चित्रकूट से तेरह मील पर है। चित्रकूट पर भी आप का राज्य समझ पड़ता है। करवी का उसमें सम्मिलित होना लिखा ही है और वह चित्रकूट से तीन ही मील पर है। सन् १६७१ के लगभग महाराज छत्रसाल ने शेष बुंदेलखंड के साथ इस राज्य पर भी अधिकार कर लिया। सन् १७३१ के लगभग महाराज . छत्रसाल के राज्य का वटवारा हुआ। उक्त बातें मध्य भारत, बाँदा, हमीरपुर, रीवाँ तथा पन्ना के गजेटियरों से विदित होती हैं। मुंशी श्यामलाल के इतिहास से विदित होता है कि उपर्युक्त बटवारे में गहोरा का राज्य महाराज छत्रसाल के बड़े बेटे हृदय- शाह के भाग में पड़ा था। सोलंकियों का राज्य एक बार छूटकर