[ ९३ ] चस पूरव के लीजिए रसाल गज छावरे ॥ दच्छिन के नाथ से सिपाहिन सों वैर करि अवरंग साहिजू कहाइए न बावरे । कैसे सिवराज मानु देत अवरंगै गढ़ गाढ़े गढ़पती गढ़ लीन्हे और रावरे ।। २६३ ॥ अर्थान्तरन्यास लक्षण-दोहा कह्यो अरथ जहँही लिये और अरथ उल्लेख । सो अर्थांतरन्यास है कहि सामान्य विसेख ॥ २६४ ।। ___उदाहरण-सामान्य भेद-कवित्त मनहरण बिना चतुरंग संग वानरन लैंके बाधि वारिध कोलंक रघुनन्दन जराई है। पारथ अकेले द्रोन भीपम से लाख भट जीति लीन्ही नगरी विराट में वड़ाई है ।। भूपन भनत द्वै गुसुलखाने में खुमान अवरंग साहिबी हथ्याय हरिलाई है। तो कहा अचंभो महराज सिवराज सदा वीरन के हिम्मतै हथ्यार होति आई है ।। २६५ ।। . . विशेप भेद-मालती सवैया साहि तनै सरजा समरत्थ करी करनी धरनी पर नीकी । भूलिगे भोज से विक्रम से औ भई बलि वेनु कि कीरति फीकी ।। इसका लक्षण अन्य कवि यों देते हैं-अर्थातरन्यास वह है जहाँ सामान्य से विशेष का या विशेष से सामान्य का समर्थन हो । इसमें सामान्य विशेष दोनों होते हैं, किन्तु दृष्टान्त में या तो सामान्य ही सामान्य रहते हैं या विशेप हो विशेष ।
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