पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१८३

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

[ ९२ ] अर्थापत्ति (काव्यार्थापत्ति) ___ लक्षण-दोहा "वह कीन्यो तौ यह कहा" यों कहनावति होय । अर्थापत्ति वखानहीं तहाँ सयाने लोय ।। २६० ।। उदाहरण-कवित्त मनहरण सयन मैं साहन को सुन्दरी सिखावें ऐसे सरजा सों वैर जनि करौ महा वली है। पेसकसे भेजत विलायति पुरुतगाल सुनिकै सहमि जात करनाट थली है ॥ भूषन भनत गढ़ कोट माल मुलुक दै सिवा सों सलाह राखिए तौ वात भली है। जाहि देत दंड सब डरिकै अखंड सोई दिली दलमली तो तिहारी कहा चली है ?" || २६१ ॥ काव्यलिंग लक्षण-दोहा है दिवाइवे जोग जो ताको करत दिढ़ाव । काव्यलिंग तासों कहें भूपन जे कविराव ।। २६२ ।। उदाहरण-मनहरण दंडक साइति ले लीजिए विलाइति को सर कीजै बलख विला- यति को वंदि अरि डावरे । भूषन भनत कीजै उत्तरी भुवाल १० नं० २४२ का नोट देखिए । २ छ० नं० ११७ का नोट देखिए । काव्य लिंग में हेतु शापक मात्र होता है, कारक नहीं। शापक केवल शन देने वाले को कहते हैं और कारक कर्म करने वाले को। कारक को उत्पादक हेतु मी