पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१६१

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[ ७० । असंगति (द्वितीय) लक्षण-दोहा आन ठौर करनीय सो करै और ही ठौर । ताहि असंगति और कवि भूपन कहत सगौर ।। २०१।। ___ उदाहरण-मनहरण दंडक भूपति सिवाजी तेरी धाक सों सिपाहिन के राजा पातसाहिन के मन ते.अहंगली । भाँसिला अभंग तू तो जुरतो जहाँई जंग तेरी एक फते होति मानो सदा संग ली ।। साहि के सपूत पुहुमी के पुरहूत कवि भूपन भनत तेरी खरग उदंगली | सत्रुन की सुकुमारी थहरानी मुंदरी औ सत्रु के अगारन में राखे जंतु जंगली ।। २०२ ॥ असंगति (तृतीय) लक्षण–दोहा करन लगे और कछू करै औरई काज । तहों असंगति होति है कहि भूपन कविराज ।। २०३ ।। उदाहरण-मालती सवैया साहितनै सरजा सिव के गुन नेकहु भापि सक्यो न प्रवीनो। उद्यत होत कछू करिबे को करै कछु बीर महा रस १ अहंकार गल गया। २ उइंड ।