पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१५५

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[ ६४ ] पुरतगाल सागर उतरते ॥ सरजा सिवा पर पठावत मुहीम काज हजरत हम मरिवे को नहिं डरते । चाकर हैं उजुर कियो न जाय नेक पै कछू दिन उबरते तो घने काज करते ॥ १८० ॥ विरोध (द्वितीय विषम) लक्षण-दोहा द्रव्य क्रिया गुन में जहाँ उपजत काज विरोध । ताको कहत विरोध है भूपन सुकवि सुबोध ॥१८१ ।। उदाहरण-मालती सवैया श्री सरजा सिव तो जस सेत सों होत हैं वैरिन के मुँह कारे। भूपन तेरे अन्न प्रताप सफेद लखे कुनबा नृप सारे ।। साहि ननै तब कोप कृसानु ते वैरि गरे सब पानिप वारे। एक अचं- भव होत बड़ो तिन ओंठ गहे अरि जात न जारे ।। १८२ ।। विरोधामास लक्षण-दोहा जहँ विरोध सो जानिये, माँच विरोध न होय । तहाँ विरोधाभास कहि, बरनत हैं सब कोय ॥१८३।।