पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१४५

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ताहि सहोक्ति बखानहीं, जे भूपन कविराव * ॥१४९।। उदाहरण-मनहरण दंडक छूट्यो है हुलास आमखास एक संग छुट्यो हरम सरम एक संग विनु ढंगं ही। नैननै ते नीर धीर छूट्यो एक संग छूटी सुख रुचि मुख रुचि त्योही विन रंग ही ॥ भूपन वखाने सिवराज मरदाने तेरी धाक विललाने न गहत वल अंग ही। दक्खिन को सूवा पाय दिली के अमीर तजै उत्तर की आस जीव आस एक संग ही ॥१५॥ विनोक्ति . लक्षण-दोहा बिना कळू जहँ बरनिए कै हीनो के नीक । ताको कहत विनोक्ति हैं कवि भूपन मति ठीक ।।१५१।। अभाव से भलाई-उदाहरण-दोहा सोभमान जग पर किए सरजा सिवा खुमान । साहिन सों विनु डर अगड़२ विनु गुमान को दान ।।१५२।। पुनः--मालती सवैया को कविराज विभूपन होत विना कवि साहितनै को कहाए ?। को कविराज सभाजित होत सभा सरजा के विना गुन गाए ? ।। को कविराज भुवालन भावत भौसिला के मन

  • सहोक्ति में साथ के कारण एक शब्द का अनेक स्थानों पर अन्वय ( आरोप)

किया जाता है। भयानक रसपूर्ण । २ सकढ़।