पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१४०

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[ ४९ । अर्थावृत्ति दीपक-उदाहरण-दोहा सिव सरजा तव दान को करि को सकत बखान ? वढ़त नदीगन दान जल उमड़त नद गजदान ।। १३२ ॥ . पदावृत्ति दीपक--मालती सवैया चक्रवती चकता चतुरंगिनि चारिउ चापि लई दिसि चंका। भूप दरीन दुरे भनि भूपन एक. अनेकन वारिधि नंका ॥ औरंग साहि सों साहि को नंद लरो सिव साहि बजाय कै डंका । सिंह की सिंह चपेट सहै गजराज सहै गजराज को धंका ॥ १३३ ॥ पदार्थावृत्ति दीपक-मनहरण दंडक अटल रहे हैं दिगअंतन के भूप धरि रैयति को रूप निज देस पेस करि कै । राना' रह्यो अटल वहाना करि चाकरी को बाना तजि भूषन भनत गुन भरि कै। हाड़ा रायठौर कछवाहे४ गौर" और रहे अटल चकत्ता को चमाऊ धरि डरि के। अटल सिवाजी रह्यो दिल्ली को निदरि धीर धरि ऐंड धरि तेग धरि गढ़ धरि के ।। १३४ ॥ १ महाराणा उदयपुर। २ हाला क्षत्रिय बूंदी और कोटा में राज्य करते हैं । ३ जोधपुर के महाराज । ४ कछवाहे अर्थात् कुशवंशी क्षत्रिय जैसे अम्बर ( जयपुर ) वाले । ५ गोरों की रियासत छोटी थी जिसको राजधानी सुपुर ( राजपूताना ) में थी। सिंधिया ने उसके वृहदंश पर कबजा कर लिया। पृथ्वीराज के समय में गौर राजाओं का बड़ा मान और प्रभुत्व था। ६ चैवर ।