पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१३८

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[ ४७ ] जंग में । भूषन चढ़त मरहट्टन के चित्त चाव खग्ग खुलि चढ़त है अरिन के अंग मैं ।। भौसिला के हाथ गढ़ कोट हैं चढ़त अरिजोट है चढ़त एक मेरु गिरि सुंग मैं। तुरकान गन व्योमयान हैं चढ़त बिनु मान है चढ़त बदरंग अवरंग मैं ॥१२५।। ___ अवयों का साधर्म्य-अन्यच्च-दोहा सिव सरजा भारी भुजन भुव भरु धखो सभाग। भूपन अव निहचिंत हैं सेसनाग दिगनाग ।।१२६।। ' द्वितीय-लक्षण दोहा हित अनहित को एक सो जहँ बरनत व्यवहार । तुल्यजोगिता और सो भूपन ग्रंथ विचार ॥१२७।। हिताहित उदाहरण-कवित्त मनहरण गुनन सों इनहूँ को बाधि लाइयतु पुनि गुनन सों उनहूँ को बाधि लाइयतु है। पाय गहि इनहूँ को रोज ध्याइयतु अरु पाय गहि उनहूँ को रोज ध्याइयतु है । भूपन भनत १ अरिन के जोदे एक होकर अर्थात् वहुत से अरि साथ साथ । २ विनमान औरॅग में बदरंग चढ़ता है। ३ गुण.अर्थात् अपने अच्छे गुणों के कारण। . ४ रस्सियों से। ५ पैर छूकर । ६ पाकर, पकद कर।