[ ३८ ] सिद्ध विपया हेतूत्प्रेक्षा-कवित्त मनहरण लूट्यो खानदौरा जोरावर सफजंगै अरु लह्यो कारतलबखाँ' मनहुँ अमाल हैं । भूषन भनत लूट्यो पूना मैं सइस्तखान गढ़न मैं लूट्यो त्यों गढ़ोइन को जाल है ॥ हेरि हेरि कूटि सलहेरि बीच सरदार घेरि वेरि लूट्यो सब कटक कराल है। चांदनी को है, किन्तु कवि ने चांदनो न कह कर केवल कीर्ति की छवि का पृथ्वी, आंगन आदि का छूना कहा है। .
- हेतूत्प्रेक्षा में अहेतु को हेतु कर के कहते हैं। सिद्ध विषया में अहेतु सम्भव है
किन्तु मसिद्ध विषया में असम्भव । कवि ने केवल सिद्ध विषया कही है। १ खानदौरों को शाहजहाँ ने १६३४ ई० में दक्षिण का सूबेदार नियत किया था। बादशाह को ओर से उसने वीजापुरवालों से युद्ध कर लाभदायक संधि की। वाद को औरंगजेब ने इसे इलाहावाद का किला जीतने भेजा। इसका नाम नौशेरी खाँ था ( छंद नं० २०७ देखिए ) पर मुगलों के लिये अनेक किले जीतने पर इसे खानदौरों की पदवी मिली । यह सन् १६५० में अहमदनगर में शिवाजी से लड़ा। ____२ यह नाम इतिहास में नहीं मिलता। या तो यह शब्द विशेषण मात्र है अथवा इस नाम का कोई साधारण सरदार होगा। ३ और ४ कारतलबखाँ सन् १६५४ में अहमदनगर पर शिवाजो से लड़ा था। किसी किसी प्रति में पाठकार के स्थान पर मार है, पर शुद्ध कार ही समझ पड़ता है। सफजंग का नाम छत्र-प्रकाश में छत्रसाल जी से लड़नेवालों में लिखा है। यह दिल्लो का सरदार था और इसका ठीक नाम सफदरजंग था। इसका कोई युद्ध शिवाजी से नहीं मिलता। ५ शाइस्ता खाँ ( छंद नं० ३५ नोट देखिए )। ६ गढ़पतियों अथवा किलेदारों को।