पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१०३

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

[ १२ ] उदाहरण-मनहरण दंडक मिलतहि कुरुखं चकत्तों को निरखि कीन्हाँ सरजा सुरेस ज्यों दुचित ब्रजराज को। भूपन कुमिसै गैरमिसिल खरे किए को किये म्लेच्छ मुरछित करि कै गजराज को।। अरे ते गुसुलखाने चीच ऐसे उमराय लै चले मनाय महराज सिवराज को। दावदार निरखि रिसानो दीह दलराय जैसे गड़दार अड़दार गजराज को ॥ ३४॥ अन्यच्च-मालती सवैया सासता खाँ दुरजोधन सो औ दुसासन सो १ कुरुख कीन्हों-मुँह विगाड़ दिया, क्रोधांध कर दिया। २ चराताई के वंशज अर्थात् औरंगजेब को। ३ बुरे बहाने से। ४ अनुचित साथियों में (पंज हजारियों को पंक्ति में )। .५ वे सोंटेमार लोग नो मस्त हाथी को पुचकार कर आगे बढ़ाते हैं। १६ ऐंडदार, मत्त । इन दो पदों का आशय यह है कि शिवाजी को गुसलखाने में अड़ते (अर्थात् ठिठकते) देख (औरंगजेब पर जोखिम आ जाने के भय से) दरवार के अमीर उमरा लोग उसे ( अर्थात् शिवाजी को ) यों मना ले चले जैसे किसी दावदार -मस्त हाथी को मस्ताया हुआ देख सोंटेमार लोग पुचकार कर आगे ले चलते हैं। गुसलखाने के विषय पर भूमिका देखिए । यह घटना सन् १६६६ ईसवी की है। ७ शाइस्ताखाँ दिल्ली का एक बड़ा सरदार था। चाकन को जीतता हुआ वह पूना को विजय करके वहीं ठहरा। ५ अपरैल की रात को शिवाजी केवल २००