पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१०२

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[ ११ ] सिव चरित्र लखि यों भयो कवि भूपन के चित्त । भाँति भाँति भूपननि' सों भूपित करौं कवित्त ।। २९ ।। सुकविन हूं की कछु कृपा समुझि कविन को पंथ । भूपन भूपनमय' करत "शिवभूषन सुभ ग्रंथ ।। ३० ॥ भूपन सब भूपननि मैं उपमहि उत्तम चाहि । याते उपमहि आदि दै बरनत सकल निवाहि ।। ३१ ।।.." । अथा ग्रंथ प्रारंभ उपमा लक्षण-दोहा जहाँ दुहुन की देखिए सोभा बनति समान । उपमा भूपन ताहि को भूषन कहत सुजान ।। ३२ ॥ जा को बरना कीजिए सो उपमेय प्रमान । जाकी सरवरि कीजिए ताहि कहत उपमान ।। ३३ ।। थे। इनके राज्य में १०४३३ ग्राम थे जिनकी वार्षिक आय बीस लाख रुपए थी । इनका राज्य सन् १६७१ के लगभग बुन्देला महाराज छत्रसाल ने छीन लिया था। रुद्र भी राजा हुए या नहीं, सो अशात है। भूमिका देखिए। १ अलंकारों। २ यदि कहें "मुख चंद्र सार मनोहर है" तो "मुख" उपमेय होगा और "चंद्र" उपमान । उपमा में वाचक और धर्म ( गुणादि ) मी होते हैं सो यहाँ “सा" वाचक. है और "मनोहर" धर्म ।