पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१०१

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[१०] दोहा तहँ नृप रजधानी करी जीति सकल तुरकान । शिव सरजा रुचि दान में कीन्हों सुजस जहान ||२४|| अथ कविवंश वर्णन देसन देसन तें गुनी आवत जाचन ताहि । तिनमें आयो एक कवि भूपन कहियतु जाहि ॥ २५ ॥ दुज कनौज कुल कस्यपी रतनाकर सुत धीर । वसत तिविक्रमपुर सदा तरनितनूजा तीर ।। २६ ।। वीर वीरवर से जहाँ उपजे कवि अरु भूप । देव बिहारीश्वर जहाँ विश्वेश्वर तद्रूप ॥ २७ ॥ कुल सुलंक चितकूटपति साहस सील समुद्र । कवि भूपन पदवी दई हृदयराम सुत रुद्रं ॥२८॥ सन् १६६२ से मरण पर्यन्त शिवाजी को राजधानी रायगढ़ में रहो। २ इन दोहों से स्पष्ट है कि भूपण नो कान्यकुब्ज ब्राझग, कश्यपगोत्री (त्रिपाटी) श्री रत्नाकरनी के पुत्र, त्रिविक्रमपुर में यमुना जी के किनारे रहते थे जहाँ वोरवलजो हो गए थे ओर विहारीश्वर ग्रामदेव थे । इसको विशेष व्याख्या भूमिका में देखिए । ३ राजा वीरवल मौजा अकवरपुर बीरबल जिला कानपुर में उत्पन्न हुए थे । यह अकवरपुर तहसील अकवरपुर नहीं वरन् एक और गाँव यमुनाजो के किनारे है । भूमिका देखिए। ४ "हृदयराम" तुन "रुद्र" के विषय में स्फु० का० छं० नं. २ का नोट देखिए । गहोरा चित्रकूट से १३ मील पर है । हृदयराम गहोरा के शासक