भूतनाथ प्रभाकरसिंह को देख कर गुलाबसिंह ने बहुत प्रसन्नता प्रगट को और दो चार मामूली बातचीत के बाद कहा "भूतनाथ की जुबानी आपका हाल सुन कर मुझे वडा ही आश्चर्य हुना । आपने भूतनाथ को यह समझाने की कोशिश की थी कि यह अगस्त मुनि को मूर्ति बोलती है और इसकी जुबानी पापको इन्दुमति का बहुत कुछ हाल मालूम हुआ है।" प्रभाकर० । नि सन्देह । मेरा यह कहना केवल आश्चर्य वढाने के लिए नही है बल्कि इस विपय पर विश्वास दिलाने के लिए है, अव तुम लोग पा ही गए हो तो अपने कानों से सुन लेना कि मूर्ति क्या कहती है। मुझे यह वात अकस्मात मालूम हुई। मैं नहीं जानता था कि इस मूर्ति में ऐसे गुण भरे हुए है, मगर अफसोस इस बात का है कि यह मूर्ति रोज नहीं वोलती और न हर वक्त किसी के सवाल का जवाब देती है। इसके वोलने का खास खास दिन मुकर्रर है जिसका ठीक ठीक हाल मुझे मालूम नही है मगर इतना मै जान गया है कि वातचीत करते समय यह मूर्ति अन्त में सुद बता देती है कि अव आगे किस दिन और किस समय वोलेगी। इसकी जुबानी सुन कर मैं कहता हूं कि आज ग्यारह घडी रात जाने के बाद यह ति पुन वोलेगो और इसके बाद पुन रविवार के दिन वातचीत करेगी। आह । ईश्वर की लीला का किसी को भी अन्त नही मिलता, मेरी अक्ल हैरान है और कुछ भी समझ में नहीं आता कि क्या मामला है ! गुलाव० । नि सन्देह यह पाश्चर्य की बात है । खैर अव जो कुछ होगा हम लोग देख ही सुन लेंगे परन्तु यह तो वताइए कि आप इस मूर्ति को जुवानी क्या क्या सुन चुके हैं ? प्रभाकर० । सो मैं अभी कुछ भी नहीं कहूंगा, थोडी ही देर की तो बात है सब करो, समय पाया ही चाहता है, जो कुछ पूछना हो खुद इस मूर्ति से पूछ लेना । तब तक मैं जरूरी कामो से निपट कर सध्योपासन में .
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