नही है क्योकि इस समय भी मेरी पोशाक वैसी ही है जैसी हमेशा रहती थी,
इससे मालूम होता है कि वह आदमी मेरे लिए कोई नया नहीं हो सकता।
अस्तु जो ही मगर इस समय इन्दु मेरे हाथ से निकल गई । न मालूम अब
उस बेचारी पर क्या आफत आवेगी । हाय यह सब खराबी विमला की
बदौलत हुई, न वह मुझे बहका के यहाँ लाती और न यह नौबत पहुँचती।
हां यह भी सम्भव है कि यह कार्रवाई विमला ही ने की हो क्योकि अभी
कई घन्टे बीते है कि उसने मुझे लिखा भी था कि 'इन्दु किसी आफत में
फँसा चाहती है, उसकी मदद की जाती है।' शायद उसका मतलब इसी
आफत से हो? क्या यह भी हो सकता है कि विमला ही ने यह ढौग रचा
हो और उसी ने किसी आदमी को मेरी सूरत बना कर इन्दु को निकाल
लाने के लिए भेजा हो ? नही अगर ऐसा होता तो वह यह न लिखती कि
'इन्दु बहिन बुरी आफत मे पड़ा चाहती हैं।' हां यह हो सकता है कि इस
होने वाली घटना का पहिले ही से उसे पता लगा हो और इसी दुष्ट के
कब्जे से इन्दु को छुड़ाने के लिए वह गई हो । जो हो, कौन कह सकता
है कि इन्दु किस मुसीबत में गिरफ्तार हो गई ? अफसोस इस बात का है
कि मेरी आँखो के सामने यह सब कुछ हो गया और मैं कुछ न कर सका।"
इसी तरह की बातें प्रभाकरसिंह को सोचते कई घण्टे बीत गए मगर इन बीच में कोई शान्ति दिलाने वाला वहां न पहुँचा । कई नौजवान लड़के जो बंगले के बाहर पहरे पर दिखाई दिए थे इस समय उनका भी पता न था। दिन भर उन्होंने कुछ भोजन नहीं किया था मगर भोजन करने की उन्हें कोई चिन्ता भी न थी, वे केवल इन्दुमति की अवस्था और अपनी बैबसी पर विचार कर रहे थे, हाँ कभी कभी इस बात पर भी उनका ध्यान जाता कि देखो अभी तक किसी ने भी मेरी सुंघ न ली और न खाने पीने के लिए ही किसी ने पूछा"
चिन्ता करते करते उनकी आँख लग गई और नीद मे भी वे इन्दुमति के विषय में तरह तरह के भयानक स्वप्न देखते रहे । आधी रात जा चुकी