मगर वह भी कोई साधारण व्यक्ति न होगा जिसका यह अनूठा स्थान है।
हा यह भी तो है कि यदि ये दोनो व्यभिचारिणी होती तो मुझे यहाँ न लाती
और इन्दु को भी लाने की चेष्टा न करती . मगर अभी यह भी क्योकर
कह सकते हैं कि इन्दु को यहां लाने की चेष्टा कर रही हैं । अच्छा जो
होगा देखा जायगा, चलो पहिले मैदान में घूम आवें तब फिर उन दोनो के
आने पर बातचीत से सब मामले की थाह लेंगे।"
प्रभाकरसिंह दरवाजा खोल कर उस कोठड़ी में घुस गए जिसकी तरफ विमला ने इशारा किया था। उसके अन्दर नहाने तथा सन्ध्या पूजा करने का पूरा पूरा सामान करीने से रक्खा हुआ था, बल्कि एक छोटी सी अल- मारी में कुछ जरूरी कपड़े और भोजन करने के अच्छे अच्छे पदार्थ भी मौजूद थे। प्रभाकरसिंह ने अपनी ढाल तलवार एक खूटी से लटका दी और तीर कमान भी एक चौकी पर रख कर कपडे़ का कुछ बोझा हलका किया और जल से भरा हुआ लौटा उठा कर कोठड़ी के बाहर निकले। कई कदम आगे गए होंगे कि कुछ सोच कर लौटे और उसी कोठड़ी में जा कर अपनी तलवार खूटी पर से उतार लाये और बंगले के बाहर निकले।
दिन पहर भर से ज्यादे चढ़ चुका था और धूप में गर्मी ज्यादे आ चुकी थी मगर उस सुन्दर घाटी में जिसमें पहाड़ी से सटा हुआ एक छोटा सा चश्मा भी वह रहा था जंगलो गुल बूटे और सुन्दर पेड़ो की बहुतायत होने के कारण हवा बुरी नहीं मालूम होती थी। प्रभाकरसिंह पूरव तरफ मैदान की हद तक चले गए और नहर लाघ कर पहाड़ी के कुछ ऊपर चढ़ गए जहाँ पेड़ो का एक बहुत अच्छा छोटा सा झुरमुट था । जब कुछ देर बाद वहाँ से लौटे तो नहाने धोने और सन्ध्या पूजा के लिए इन्हें वह चश्मा ही प्यारा मालूम हुआ अस्तु वे उसके किनारे एक सुन्दर चट्टान पर बैठ गए।
घण्टे डेढ़ घण्टे के अन्दर ही प्रभाकरसिंहसब जारूरी कामो से निश्चिन्त हो गए तथा अपने कपड़े भी धोकर सुखा लिए। इसके बाद उस बंगले में पहुंचे और इस आशा में थे कि जमना और सरस्वती यहाँ आ गई होंगी मगर