प्रभाकर० । (आश्चर्य से) यह तुम क्या कह रही हो ?
विमला० । बेशक ऐसा ही है, आपने उस कमीने को पहिचाना नहीं ! वह वास्तव में गदाधरसिंह है, मूरत बदले हुए चारो तरफ घूम रहा है । आज कल वह अपनी नौकरी पर अर्थात मेरे ससुर के यहाँ नही रहता।
प्रभाकर० । यह तो मुझे भी मालूम है कि आज कल गदाधरसिंह लापता हो रहा है और किसी को उसका ठीक हाल मालूम नही है, मगर यह बात मेरे दिल में नहीं बैठती कि भूतनाथ वास्तव मे वही गदाधरसिंह है।
विमला० । मै जो कहती हूं, बेशक ऐसा ही है।
प्रभाकर० । (सिर हिला कर) शायद हो । (कुछ सोच कर) खैर पहिले मै इन्दु को उसके यहा से हटाऊंगा और तब साफ साफ उससे पूछूंगा कि बताओ तुम गदाधरसिंह हो या नहीं ?" मगर फिर भी इसका सबूत मिलना कठिन होगा कि दयाराम को उसी ने मारा है ।
विमला० । नही नहीं, आप ऐसा कदापि न करें, नहीं तो हमारा सब उद्योग मिट्टी में मिल जायगा!
प्रभाकर० । नहीं मैं जरुर पूछूंगा और यदि तुम्हारा करना ठीक निकला तो मै स्वयम उससे लडूंगा।
विमला० । (उदासी से) ओह । तब तो आप और भी अंधेर करेंगे।
प्रभाकर० । नही, इस विषय मे मै तुमसे राय न लूंगा।
विमला० । तब आप अपनी प्रतिजा भंग करेंगे।
प्रभाकर० । ऐसा भी न होने पावेगा (कुछ सोच कर) खैर यह तो पीछे देखा जायगा, पहिले इन्दु की फिक्र करनी चाहिए । यद्यपि गुलाबसिंह उसके साथ है और अभी यकायक उसे किसी तरह की तकलीफ नहीं हो सकती।
विमला० । मैं उसके लिए बन्दोबस्त कर चुकी हूँ आप बेफिक्र रहें ।
प्रभाकर० । भला में बेफिक्र क्योंकर रह सकता हूँ ? मुझे यहाँ से जाने दो,भूतनाथ के घर जाकर सहज ही में यदि तुम चाहती हो तो उसे