भूतनाथ | ४ |
जेठ का महीना और शुक्ल पक्ष की चतुदशी का दिन है । यद्यपि रात पहर भर से कुछ ज्यादे जा चुकी है और आँखो मे ठण्ढक पहुंचाने वाले चन्द्रदेव भो दर्शन दे रहे है परन्तु दिन भर की धूप और लू की बदौलत गरम भई हुई जमीन मकानो को छतें और दीवारें अभी तक अच्छी तरह ठराढो नही हुई । अव भी कभी कभी सहारा ये देने वाले हवा के झपेटे मे पडती है और बदन से पसीना निकल रहा है। बाग मे सैर करने वाले शौकोनो को भी पखे की जरूरत है और जगल मे भटकने वाले मुसाफिरो को भी पेडो की प्राड बुरी मालूम पड़ती है ।
ऐसे समय मे मिर्जापूर से वाईस कोम दक्खिन की तरफ हट कर छोटी सी पहाटी के ऊपर जिम पर वडे बडे और घने पेडो की कमी तो नही है मगर इस समय पत्तो को वमो के सवव से जिनकी खूबसूरती नष्ट हो गई है, एक पत्थर की चट्टान पर हम ढाल तलवार तथा तीर कमान लगाए हुए दो श्रादमियो को बैठे देखते है जिनमे से एक श्रीरत और दूसरा मर्द है । औरत की उम्र चौदह या पन्द्रह वर्ष की होगी मगर मर्द की उम्र बीस वर्ष से कम मालूम नही होती । यद्यपि इन दोनो की पोशाक मामूली सादी और विल्कुल हो सावारण ढग की है मगर सूरत शदल से यही जान पडता है कि ये दोनो सानारण व्यक्ति नहीं है बल्कि किसी अमीर बहादुर और क्षत्री खानदान के होनहार है । जिस तरह मर्द चपकन पायजामा कमरवन्द और मुडासा पहिरे हुए ह उसी तरह औरत ने भी चपकन पायजामा कमरवन्द और मुडामे से अपनी सूरत मर्दाने ढग को वना रक्खी है । यकायकी सरसरी निगाह से देख कर कोई यह नहीं कह सकता कि यह औरत है, मगर हम सूब जानते है कि यह कमसिन और नौजवान लडकी है जिसकी सूबसूरती मर्दानो पोशाक पहिरने पर भी यकताई का दावा करती है, मगर जिसकी शर्मीली प्रासें क्हे देती है कि इसमे ढिठाई और ददगता विल्कुल नही ह इस समय ये दोनो परेशान और बदहवास है, दिन भर के चले और थके हुए है,चेहरे पर गर्द पटी है, सुस्त होकर पत्यर की चट्टान पर बैठ गए है, तथा -