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पहिला हिस्सा
 


इतना कह कर विमला उठी और उसने इस कमरे के कुल दर्वाजे बन्द कर दिए।

इन्दु जब से यहाँ आई है तब से इसी कमरे में है, उसे इसके बाहर का हाल कुछ भी मालूम नहीं है, वह नही जानती कि इस कमरे के बाहर कोठड़ी है या दालान, वारहदरी है या सायवान, पहाड़ है या वियावान । होश मे आने के बाद उसमें भी बाहर निकलने की ताकत ही नही आई हाँ, इसके भीतर की तरफ दो कोठड़ी एक पायखाना और एक नहाने का घर है उन्हें इन्दु जरूर जानती है क्योकि इन कोठड़ियो से उसे वास्ता पड़ चुका है ।

विमला इन्दु के पास से उठ कर दर्वाजा बन्द करने के बाद उसी नहाने वाली कोठड़ी में चली गई और थोड़ी ही देर मे लौट आकर मुस्कु- राती हुई इन्दु के पास गई और बोली, "लो अब तुम मुझे गौर से देखो और पहिचानो कि मैं कौन हूँ?"

यद्यपि इन्दु बीमार कमजोर और हतोत्साह थी तथापि बिमला की नवीन सूरत देखते ही चौकी और उठ कर उसके गले से लिपट गई।

विमला० । बस समझ लो कि इसी तरह कला भी सूरत बदले हुए है। हम दोनो बहिने एक साथ एक ही अनुष्ठान सावन के लिए सूरत बदल कर गहदशा के दिन काट रही है। जब तक कम्बख्त भूतनाथ से बदला न ले लेंगी जब तक.....

इन्दु० । (विमला को छोड़ कर) अहा । मुझे कब आशा थी कि इस तरह अपनी बहिन जमना और सरस्वती को देखूंगी, मगर भूतनाथ.

कला०। (विमला से) बस बहिन । अब बातें पीछे करना पहिले अपनी सूरत बदलो और उस झिल्ली को चढ़ा कर विमला वन जाओ, दर्वाजे खोल दो और आराम से बातें करो।

  • इस झिल्ली को वैसा ही समझना चाहिए जैसी चन्द्रकान्ता चौथे

हिस्से के आखीर मे चन्द्रकान्ता चपला और चम्पा ने उतार कर दिखाई थी।