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भूतनाथ
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विमला०। अच्छा खैर यह बताओ कि तुम्हें अपना मायका (बाप का घर) छोडे़ कितने दिन हुए?

इन्दु० । (कुछ सोच के) लगभग एक वर्ष और सात महीने के हुए होगे। शादी भई और मायका छूटा । तब से आज तक दुख ही दुख उठाती रही । मै अपनी माँ और दो मौसेरी बहिनो को फूट फूट कर रोती हुई छोड़ कर पति के साथ रवाना हुई थी, वह दिन कभी भूलने वाला नही । इतना सुनते ही कला और विमला की आँखों में आंसू डबडवा आये।

विमला० । (आंसू पोछ कर) मुझे भी वह दिन नहीं भूलने का। इन्दु० । (आश्चर्य से) बहिन तुम्हे वह दिन कैसे याद है, तुम वहा कहा थी?

विमला० । मैं थी और जरूर थी, बल्कि हम दोनो बहिनें (कला की तरफ इशारा करके) वहा थी।

इन्दु० । सो कैसे, कुछ कहो भी तो।

विमला० । बस इतना ही तो असल भेद है, सब बातें इसी से सम्बन्ध रखती है । (धीरे से) तुम्हारी वे दोनों मौसेरी बहिनें हम दोनो कला और विमला के नाम से आज साल भर से यहाँ निवास करती है । यद्यपि देखने में हर तरह से सुख भोग रही हैं मगर वास्तव में हमारे दुख का कोई पाराबार नहीं।

इन्दु० । (बडे़ ही आश्चर्य से) यह तो तुम एक ऐसी बात कहती हो कि जिसका स्वप्न में भी गुमान नही हो सकता । यद्यपि तुम दोनो की उम्र वही होगी, चालढाल बातचीत सब उसी ढंग की है, मगर सूरत शक्ल में जमीन आसमान का फर्क है । ओह । नहीं, यह कैसे हो सकता है । मुझे कैसे विश्वास हो सकता है ?

विमला० । (मुस्कुरा कर) हम दोनो की सूरत शक्ल में भी किसी तरह का फर्क नही पड़ा है । मैं सहज ही में विश्वास दिला दूंगी कि जो कुछ कहती हूँ वह बाल बाल सच है । अच्छा ठहरो, मैं तुम्हें अभी बता देती हूँ।