तीसरा हिस्सा m इतना कह कर जमना मकान की तरफ नेजी के साथ चल पडी, सरस्वती तथा इन्दुमति ने भी उसका साथ दिया । यह मकान देखने मे यद्यपि बहुत छोटा था मगर इसके अन्दर गुजाइश बहुत ज्यादे थी और वनिस्वत ऊपर के इसका बहुत बड़ा हिस्मा जमीन के अन्दर था । इसके रास्तो का पता लगाना अनजान आदमी के लिए कठिन ही नहीं बल्कि विल्कुल ही असम्भव था। दो चार प्रादमी तो क्या पनासो प्रादमी इसके अन्दर छिप कर रह सकते थे जिनका पता सिवाय जानकार के कोई दूसरा नहीं लगा सकता । इस मकान के अन्दर कैनी कसी कोठरिया, कैगे कमे तहसाने और कैसी कंसो सुरंगें या रास्तै थे इमे उस तिलिस्म से लवध ग्मने वाला भी हर एक आदमो नहीं जान सकता था, परन्तु नारायण ने जो किताव जमना को दी थी उसमें वहा का कुल हाल मञ्छी तरह लिग्ना हुया था। प्रय हम यह लिखते हैं कि वे दोनो पाने वाले कौन थे जिन्हें देख कर जमना सरस्वती पोर मुन्दुमति भाग कर घर में चली गई थी। वे दोनो भूननाथ और तिलिस्मी दारोगा साहब थे। दारोगा भूननाथ की मदद पर तैयार हो गया था और उसने प्रतिज्ञा नो यो कि तुम्हें तिलिस्म से अन्दर ले चल कर जमना, सरस्वती और इन्दुमति को गिरप्तार करा ढूंगा तथा प्रभाकरसिंह को दूगरी दुनिया में पहुचा द् गा । इनो तरह भूत- नाथ ने ना दारोगा से वादा किया था कि महाराज जमानिया के भाई शवर सिंह ने मारने में मैं तुम्हारी मदद नाम्गा और यह कार्रवाई इस ढंग से की जायगी कि किसी को इस बात का गुमान भी न होगा कि शकरसिंह कब और गाहा गारे गये या उन्हें विनने माग इत्यादि । ही नवा था कि वे दोनो इस समय तिलिस्म के अन्दर दिपाई दिए। यहा का न कुछ हात दारोगा को मालूम था मगर शंकरसिंह को यह प्राशा न धी वि दारोगा उनके नाय यहा तक बरा वर्षाव कर गजरेगा, धनु वे दारोगा नो तरफ से बिल्कुल ही वेगनर थे। दारोगा और तनाय दोनो यादमो नत बदलने में अतिरिक्त चेहरे
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