६६ तीसरा हिस्सा खुलता था सन्दूक खोल कर सभी को दिखाया कि इसमे रोशनी करने का काफी सामान मौजूद है अर्थात् कई मोमबत्तियां और चकमक पत्थर वगैरह उसमें मौजूद है। एक मोमबत्ती जलाई गई और उसी को रोगना के सहारे दर्वाजा वन्द करने के बाद सब कोई नीचे उतरे। जिस तरह दर्वाजा उसी ढर, से वन्द भी होता था और यह वात दर्वाजे के पिछलो तरफ लिखी हुई थी। कई सीढिया नीचे उतर जाने के बाद एक सुरङ्ग मिली । ये चारो आदमी सुरङ्ग के अन्दर चले गये और जव सुरंग खतम हुई तो सव कोई एक सरसन्ज मैदान में पहुंचे जहा दूर तक खुशनुमा पहाडा गुल बूटे लगे हुए थे और एक छोटा सा सुन्दर मकान भी मौजूद था जिसके आगे छोटा सा झरना वह रहा था और झरने के किनारे बहुत से केले के दरख्त लगे हुए थे जिनमें कच्चे और पक्के सभी तरह के फल मौजूद थे। नारायण ने जमना सरस्वती और इन्दुमति से कहा, "अब दो तीन दिन तक तुम लोग इसी मकान में रहो तब तक मैं जाकर देखता हू कि नकली हरदेई और प्रभाकरसिंह मे क्योकर निपटी । नकली हरदेई की तरफ से उन्हें होशियार कर देना बहुत जरूरी है । (एक छोटी मी किताब जमना के हाथ मे देकर) लो इन किताव को तुम तीनो अच्छी तरह पढ़ जायो और जहा तक हो सके खूब याद कर लो, इनमें उसने ज्यादा हान लिखा है जो इन्द्रदेव ने तुम्हें बताया है या उस रिताच मे लिखा हुवा है जो प्रभाकरसिंह के हाथ से निकल कर भूतनाथ के कब्जे में चली गई है।" इतना वह कर नारायण वहा से चले गये। नौवां बयान जमानिया में आधी रात के समर तिलिस्मी दागेगा। अपने मकान में
- तिलिस्मी दारोगा का परिचय चन्द्रकान्ता सन्तति मे दिया जा चुका
है । इस समय यह ईमान कुपर गोपालसिंह के बाप राजा गिरधरसिंह का सास मुभाव पा और दीवानी के काम में भी दसन दिया करता था।