तीसरा हिस्सा होकर भृतनाथ ने मुकावले से मुंह फेर लिया । उमे विश्वास हो गया कि अगर थोडी देर तक और मुकाबला करंगा तो वेशक मारा जाऊगा, अस्तु वह धोखा देकर वहा से भाग सडा हुया और नारायण ने भी उसका पीछा किया। नारायण यद्यपि लडाई में भूतनाय से ज्यादा ताकतवर और होशियार था मगर दौडने में उसका मुकावला किसी तरह नही कर सकता था इसलिए भूवनाथ को पकड न सका और वह भाग कर नारायण की पाखो को प्रोट हो गया। प्रभाकरनिहने जमना सरस्वती और इन्दुमति का पीछा किया। वे तीनो दीवार के दूसरी तरफ चली गई मगर दाजा बन्द हो जाने के कारण प्रभाकरसिंह उसके अन्दर न जा सके। उसी समय उन्होने बाहर ही से खडे खडे सुना कि सरस्वती से और किसी गैर प्रादमी में बातचीत हो रही है । गैर श्रादमी जमना सरस्वती और इन्दुमति को बदकारी साबित किया चाहता था और उसकी बातो से प्रभाकरसिंह के दिल को पटाई और भी वढ गई थी मगर वास्तव मे मामला दूसरा ही था । वह श्रादमी जो प्रभा- करसिंह को मुना मुना कर सरस्वती से बातें कर रहा था असल मे भूतनाथ का एक शागिर्द था और उसका मतलब यही था कि अपनी बातो से प्रभाकर- सिंह का दिल जमनासरस्वती और इन्दुमति की तरफ से फेर दे, साथ हो इसके उस ऐयार में यह भी चालाको की थी कि अपनी असली मूरत मे उन औरतो फे पास न जाकर उसने एक जमीवार की मूरत बनाई थी और बातचीत करने के बाद बिना किसी तरह को तकलोफ दिए जमना नरस्वती और उन्दुमति के सामने ने नला गया था। इसके बाद प्रभाकरसिंह स्वय जमना सरबत्ती और न्दुमति ने जाकर मिने प्रौर जिस त ह ने बातचीत करके नपा परित्याग दिया धाप लोग पड़ हो चुके हैं । अव हमें इस जगह गोवल उन तीनों घोरतों ही का हाल लिखना है। जब प्रनालारविह मुमति को त्याग कार उन तीनों के सामने से चले गये तब इन्दुति बहुत ही उदास हुई और देर तक विलम बिलस पार रोती रही। अन्त में स्नने जमना से कहा-"यहिन, शव मेरे लिए जिन्दगी
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