तीसरा हिस्सा पर जो गहरी चोट वैठ चुकी थी उसकी तकलीफ किसी तरह कम न हुई और न उन तीनो को इस बात का पता ही लगा कि किसी वावाजी ने पहुंच कर हमारी तरफ से प्रभाकरसिंह का दिल साफ कर दिया। अपने शागिर्द की मदद से प्रभाकरसिंह वाली तिलिस्मी किताव पाकर भूतनाथ वहा की बहुत सी बातो से जानकार हो चुका था जो सिर्फ काम चलाने और कार्रवाई करने के लिए इन्द्रदेव ने तैयार करके प्रभाकरसिंह को दे दी थी, परन्तु भूतनाथ ऐसे धूर्त और शैतान के लिए वही बहुत थी, उसी को मदद से भूतनाथ ने अपने कई शागिर्दो के साथ उस तिलिस्म के अन्दर पहुच कर जमना सरस्वती और इन्दुमति को वेतरह सताया और दुख दिया जिसका हाल हम खुलासे तौर पर नीचे लिखते हैं । ग्रहदशा की सताई हुई जमना सरस्वती और इन्दुमति को जब भू तनाथ ने तिलिस्मो कूए मे ढकेल दिया तो वहां उन्हें एक मददगार मिल गया जिसके सबब से तानो को जान बच गई और उसो यादमी की मदद से वे तिलिस्म के अन्दर किसी कार्यवरा स्वतन्त्रता के साथ घूम रही थी। वह मददगार कौन था और उस कूए के अन्दर ढकेल देने के बाद उन लोगो की जान क्योकर वची इसका हाल फिर किसी मौके पर वयान किया जायगा, इस समय हम उस समय से उन तीनो का हाल वयान कन्ते है जहा से तिलिस्म के अन्दर प्रभाकरसिंह ने उन तीनो को देखा था। जमना सरस्वती और इन्दुमति का जो मददगार घा वह वरावर अपने चेहरे पर नकाब डाले रहता था इससे उन तीनो नै उसकी म्रत नहीं देखी थी कि उनका मददगार किस मूरत का और कैसा आदमी है, यही सबब था कि जब भूतनाथ उस तिलिस्म के अन्दर गया तो उसने भी जमना और सरस्वती के मददगार को नही पहिचाना, हाँ पहिचानने के लिए उद्योग दरावर करता रहा। एक दफे जमना ने अपने मददगार से प्रार्थना भी की थी कि अपनी वस्त दिखा दे और अपना परिचय दे, परन्तु नकाबपोश ने उमको प्रार्थना स्वीकार नहीं की थी, हा इतना जरूर कह दिया था कि तुम लोग मुझे अपने
पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/३२०
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।