३५ | पहिला हिस्सा |
सुरङ्ग के मुहाने से थोड़ी दूर भागे जाने वाद इन्दुमति नै प्रभाकरसिंह से कहा, "आपकी चाल इतनी तेज है कि मैं आपका साथ नहीं दे सकती।"
नकली प्रभाकर० । (धीमी चाल करके ) अच्छा लो मै धीरे धीरे चलता हूं मगर जहाँ तक जल्द हो सके यहा से निकल ही चलना चाहिए।
इन्दुमति०। आखिर इसका सवव क्या है, कुछ वतायो भी तो सही? नकली प्रभाकर० । अभी नहीं, थोडी देर के बाद इसका सवव बताऊंगा।
इंदुमति०। यही कहते कहते तो यहा तक आ पहुचे। मच्छा यही बतायो कि हम लोगो को कहा जाना होगा और कितना वडा सफर करना पड़ेगा?
नकली प्रभाकर० । कुछ नही थोड़ो हो दूर और चलना है इसके बाद सवारी तैयार मिलेगी जिस पर चढ कर हम लोग निकल जायेंगे।
मवारी का नाम सुन इन्दुमति चौंकी और उसके दिल में तरह तरह की बातें पैदा होने लगी। कई सायत सोचने के बाद उनने पुन नकली प्रभाकरसिंह से पूछा, "ऐसे मुसीवत के जमाने में यकायक आपको सवारी कैसे मिल गई?"
नकली प्रमाकर० । इसका जवाब भी पागे चल कर देंगे।
प्रभाकरसिंह को इस बात ने इन्दुमति को और भी तरदुद में ढाल दिया। वह चलते चलते रुक कर खड़ी हो गई और इस बीच में नकली प्रभाकरसिंह जो आगे जा रहे थे कई कदम आगे निकल गए।
हम नहीं कह सकते कि अब यकायक इन्दुमति के जी मे क्या पाया कि यह प्रभाकरसिंह के माथ जाते जाते एकदम रुक ही नहीं गई बल्कि जव प्रगाकरसिंह अपनी तेजी और जल्दबाजी में पीछे की सुव न करके इन्दुमति से कुछ मागे बढ गए तो दाहिनी तरफ हटकर वह एक गुन्जान पेट पर चढ गई और छिप कर इन्तजार करने लगी कि देखें अव जमाना क्या दिखाता है।
नकली प्रमाकरसिंह लगभग दो नी कदम से भी ज्यादे आगे बढ़ गया