प्रभाकर० । दिवाकरसिंहजी । चिक के० । पाह, क्या यह सम्भव है। फिर भी मैं कहती हूं कि मुझे विश्वास नहीं होता। प्रभाकर । अगर आपको मेरी वातों पर विश्वास नही होता तो लाचारी है, मुझे कोई ऐसी तर्कीव नहीं सूझती जिससे मैं आपको विश्वास . दिला सकू । चिक के० । हां मुझे एक तर्कीव याद आई है। प्रभाकर० । वह क्या । चिक के.। लउकपन में गेंद खेलते समय आपको जो चोट लगी थी उमे मैं देखू गी तो जरूर विश्वास कर लूगी। प्रभाकर० । (प्राश्चर्य से) यह बात आपको कैसे मालूम हुई । चिक के० । सो मै पीछे वताऊ गी। इतना सुनने हो प्रभाकरसिंह ने अपना कपडा उतार दिया और दाहिने मोडे के नीचे पीठ पर एक बहे जख्म का निशान चिक की तरफ । दिखा फर कहा, "यही वह निशान है।" इसके जवाब में चिक का पर्दा उठ गया और एक बहुत ही हसीन औरत उस खिडकी में बैठी हुई प्रभाकरसिंह को दिखाई दी, उसे देखने के साथ ही प्रभाकरसिंह बदहवास से होगये और उनके पाश्चर्यका कोई ठिकाना न रहा। अव हम थोडा हाल जमना सरस्वती और इन्दुमति का बयान करते हैं नकली हरदेई अर्थात् रामदास ने जमना सरस्वती पौर इन्दुमति की तरफ से प्रभाकरसिंह का दिल जिस तरह खट्टा कर दिया था उसे हमारे प्रेमी पाठक अच्छी तरह पढ़ हो चुके हैं इसके बाद वावाजी ने जब रामदास का असली भेद खोल कर सच्चा हाल प्रभाकरसिंह को बता दिया तव प्रभाक- रसिंह चैतन्य हो गये और समझ गये कि जमना सरस्वती और इन्दुमति धास्तव में निर्दोप हैं और उनके बारे में जो कुछ हमने सोचा समझा और किया वह सव अनुचित था प्रस्तुप्रभाकरसिंह को अपनी कार्रवाई पर वडा पेद हुमा। यह सब कुछ था परन्तु जमना सरस्वती भौर इन्दुमति के दिल 1
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