७६ भूतनाथ यानो की सुरीली आवाजो से वह सुबह का सुहावना समय और भी मजे- दार मालूम हो रहा है। इस वाग के पूरव तरफ बहुत बडी इमारत है जिसमें सैकडों आदमियो का खुशी से गुजारा हो सकता है । यह इमारत तिमञ्जली है। नीचे के हिस्से में एक बहुत बडा दीवानखाना है और दीवानखाने के दोनो तरफ वारह- दरिया है । ऊपर की मजिलो में छोटे बडे बहुत से खूबसूरत दाजे दिखाई दे रहे है, उनके अन्दर क्या है सो तो इस समय नहीं कह सकते मगर भन्दाज से मालूम होता है कि ऊपर भी कई कमरे कोठडिया दालान शहन- शीन और वारदरिया जरूर होगी। नीचे वाला दीवानखाना मामूली नही बल्कि राजसी ढग का बना हुआ है। छ पहले चालीस खम्भो पर इसकी छत कायम है । खम्भे स्याह पत्थर के हैं और उन पर सोने से पच्चीकारी का काम किया हुआ है । बाहर के रुख पर वडे बडे पांच महराब है और उन महरात्रो पर भी नेहायत खूबसूरत पच्चीकारी का काम किया हुआ है । अन्दर की तरफ अर्थात् पिछली दीवार पर भी जहा एक जडाऊ सिंहासन रक्खा हुआ है जडाऊ तथा मीनाकारी का काम हुमा है जिसमें कारीगर ने जगलो सीन और शिकारगाह को वस्वीरें बहुत हो वारोको के साथ बनाई हैं । वाई और दाहिनी तरफ को दीवारो पर कुछ ऐमा मसाला चढा हुआ है जिससे मालूम होता है कि ये दोनो दीवारें विन्लोरी शाशे को बनी हुई हैं । सिंहासन पिछली दीवार के साथ मव्य में रक्खा हुया है और उस सिंहासन से चार हाथ ऊपर एक खूबसूरत दरीचो । खिडको ) है जिसमें एक नकोस चिक पडो हुई है और उस चिक के अन्दर कदाचिन कोई प्रोरत-वैठी हुई है, और अावाज से यही जान पडता है कि वेशक वह अोरत हो है । सिंहासन के ऊपर एक खूबसूरत और वहादुर नौजवान खडा चिक की तरफ गर्दन ऊची करके ऊपर लिखी वाते वयान कर रहा है अर्थात् जो कुछ हम इस बयान में ऊपर लिख पाए है वह सब इसी नौजवान ने ऊपर खिडकी की तरफ मुंह करके वयान किया है । जव उस जवान ने यह कहा कि-'इसके बाद क्या हुअा इसकी मुझे
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