१६ तीसरा हिस्सा छठवां बयान वृद्ध महात्मा का ठाठ कुछ अजब ही ढग का था, सिर से पैर तक समाम बदन में भस्म लगे रहने के कारण इनके रङ्ग रूप का वयान करना चाहे कठिन हो परन्तु फिर भी इतना जसर कहेगे कि लगभग सत्तर वर्ष की अवस्था हो जाने पर भी उनके खूबसूरत और सुडौल बदन में अभी तक कही झुर्रा नही पडो थी और न उनके सोधेपन में कोई झुकाव पाया था । बड़ी वडी पाखो मे अभी तक गुलावी डोरियो दिख दे रही थी और उनके कटान से जाना जाता था कि अभी तक उनकी रोशनी और ताकत में किसी तरह की कमी नही हुई है। रोपावदार चेहरा चौडी छाती तथा मजबूत और गठीले हाथ पैरो को तरफ ध्यान देने से यही कहने को जी चाहता है कि यह शरीर तो छत्र और मुकुट धारण करने योग्य है न कि जटा घोर कम्बल की कफनी के योग्य । महात्मा के सिर पर लम्बी लम्बी जटा थो जो खुली हुई पीठ की तरफ लहरा रही थी। मोटे और मुलायम कम्बल का झगा वदन में और लोहे का एक डण्डा हाथ में था, बस इसके अतिरिक्त उनके पास और कुछ भी दिखाई नहीं देता था। महात्मा को देखते ही प्रभाकरसिंह ने झुक के प्रणाम किया, बावाजी ने भी पास आकर आशीर्वाद दिया और कहा, "प्रभाकरसिंह, वस जाने दो, बहादुर लोग ऐयारों की जान नही मारते और ऐयार भी जान से मारने के योग्य नहीं होते बल्कि कैद करने के योग्य होते हैं । तुम इस समम यद्यपि इस योग्य नहीं हो कि इसे बंद करके कही रस सको तथापि यदि कहो तो हम इसका प्रवन्ध कर दें क्योकि इस तिलिस्म के अन्दर हम दम वात को बखूबी कर सकते है .. प्रभाकर० । (वात काट कर) आपको आज्ञा के विरुद्ध में कदापि क्लंगा । माप बडे हैं, मेरा दिल गवाही देता है और कहना है कि यदि माप वास्तय में साथ न भी हो तो भी मेरे पृज्य पोर बडे हैं । जो कुछ .
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