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४६ तीसरा हिस्सा 1 अपनी तरफ पाते देख कर वह चौका और बोला । भूत० । देखो देखो, वह कौन पा रहा है ।। याम० । (मैदान की तरफ देख कर) हा कोई पा रहा है । ईश्वर करे मेरा भाई रामदास ही हो । भूत० । मेरे पक्षपाती के सिवाय दूसरा कोई यहा कव पा सकता है ? देखते ही देखते वह आदमी भूतनाथ के पास आ पहुंचा और भुक कर सलाम करने वाद वोला, "मेरा नाम रामदास है, पहिचान के लिए में 'चंचल' शब्द का परिचय देता हू । ईश्वर की कृपा से मेरी जान बच गई और मै राजी खुशी भापकी खिदमत में हाजिर हो गया, खाली हाथ नहीं वल्कि अपने साथ एक ऐसी चीज लाया हू जिसे देख कर आप फडक रटेंगे और वारवार मेरी पीठ ठोकेंगे।" भूत० । (प्रसन्न होकर) वाह वाह, तुम जो कुछ तारीफ का काम करो वह घोडा है ! तुम्हारे ऐसा नेक ईमानदार और धूर्त शागिर्द पावर में दुनिया मे अपने को धन्य मानता हू । प्रानो मेरे पास बैठ जाग्रो प्रोर कहो कि किस तरह तुम्हारी जान बची और मेरे लिए क्या तोहरा लाए हो। रामदास परिचय लेने के बाद अपने भाई श्यामदास के गले मिला और भूतनाथ के पास बैठ कर इस तरह वातचीत करने लगा- राम० । मेरी जान ऐसी दिलगी के माध से हग गे ची है कि उसे याद करके में चार बार खुश हुमा करता हूँ। श्याम० । मैने अभी भी पोरतादजी ने यही बात कही थी फिगर जमना सरस्वती सौर इन्दु बच कर निकल पाई है तो मेरा भाई गी जस्त वच कर निकल पाया होगा। राम० । (ताज्जुब के ग पर) सो श्या । जमना, सरस्वती सीन इन्दु- मति छूट कर कसे निकाल प्राई ? भूत० दसे छूट वर नियल नाई सो तो मै नही जानता मगर इतना सुना है कि तीनो प्रभाकरसिह के साथ व.शी में चना नदी के पिनारे टह- भू०३-४