भूतनाथ ३४ का बना हुआ था मगर उसमे ताला या जजीर वगैरह का कुछ निशान नही दिखाई देता था। रामदास का ध्यान क्सिी दूसरी तरफ था तथापि वह जानना चाहता था कि यह दर्वाजा क्योकर खुलता है, परन्तु प्रभाकरसिंह ने नसे खोलने के लिये जो कुछ कार्रवाई को वह देख न सका, यकायक दर्वाजा खुल गया और प्रभाकरसिंह ने उसके अन्दर कदम रक्खा तथा रामदाम को भी अपने साथ आने के लिये कहा। प्रभाकरसिंह और रामदास दर्वाजे के अन्दर जाकर कुछ ही दूर आगे वढे होगे कि दरवाजा पुन ज्यो का त्यो बन्द हो गया । अव प्रभाकरसिह एक ऐसे वाग में पहुंचे जहां केले और अनार के पेड बहुतायत के साथ लगे हुए थे और पानी का सुन्दर चश्मा भी बडी खूबसूरती के साथ चारो तरफ वह रहा था। इस वाग के अन्दर एक छोटा सा बगला भी बना हुआ था जिसमें कई कोठडियां थी और इस बगले के चारो तरफ सगमर्मर के चार चबूतरे बने हुए थे । वस इस वाग में इसके अतिरिक्त और कुछ भी नही था । प्रभाकरसिंह ने वहां के पके हुए स्वादिष्ट केले और अनार से पेट भरा और चश्मे का जल पोकर कुछ शान्त हुए तथा नकली हरदेई से भी ऐसा ही करने के लिये कहा। जब आदमी की तबियत परेशान होती है तो थोडी सी भी मेहनत बुरी मालूम होती है और वह बहुत जल्द थक जाता है । प्रभाकरसिंह का चित्त बहुत ही व्यग्र हो रहा था और चिन्ता ने उदास और हताश भी कर दिया था अतएव अाज थोडी ही देर की मेहनत से थक कर वे एक संगमर्मर के चबूतरे पर कुछ प्राराम करने की नीयत से लेट गये और साथ ही निद्रा- देवी ने भी उन पर अपना अधिकार जमा लिया। यहाँ प्रभाकरसिंह ने बहुत ही बुरा धोखा खाया । नकली हरदेई की वातो ने उन्हें अवमूया कर हो दिया था और इस दुनिया से वे एक तौर पर विरक्त ही हो चुके थे, कारण यही था कि उन्होने नकली हरदेई को पहिचाना न था। अगर इन बातो के हो जाने के बाद भी वे जांच कर लेते
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