तीसरा हिस्मा ३१ इन्दुमति पर निगाह पडते ही शृङ्गार रस को लहरें उठने लगती थी वह अपनी भविष्य जीवनी पर हास्य करता हुआ अव मदैव के लिये शान्त हुया चाहता है। प्राह इन्दुमति के विषय मे स्वप्न में भी ऐसे शब्दो के मुनने की क्या प्रभाकरसिंह को प्राशा हो सकती थी ? कदापि नही, यह प्रभाकर सिंह की भूल है कि हरदेई को जुबान में विष भरो घटित घटना को सुन अनुचिन चिन्दा करने लग गये है । वह नहीं जानते कि यह हरदेई वास्तव में हग्देई नही है बल्कि कोई ऐयार है । परन्तु हमारे प्रेमी पाठक इस बात को जम्र नमझ रहे होगे कि यह भूतनाथ का शागिर्द रामदास है जिसकी भूतनाथ ने उस घाटी में पहुंच कर बटा ही अनुचित और घृणित व्यवहार किया था ! नि सन्देह भूतनाथ ने डमना सरस्वती और इन्दुमति के नाथ जो कुछ किया था वह ऐयारी के नियम के विल्कुल ही बाहर था, ऐयारी का यह मतलब नहीं है कि वह बेकसूरो के खून में अपने जीवन की पविा चादर में धब्बा लगाये। यदि प्रभाकरसिंह उसको कार्रवाई का हाल सच्चा मच्चा नुनते तो न मालूम उनको क्या अवस्था हो जाती। परन्तु इम रामदास ने उन्हें बडा हो धोखा दिया और ऐनो वेढंगी बातें सुनाई उनका पविन हृदय कांप उठा पोर इन्दुमति तथा कला और विमला को तरफ से उन्हें एकादम घृणा उत्पन्न हो गई । तब क्या प्रभाकरसिंह ऐसे बेवकूफ थे फि एक मामूली ऐयार अथवा लोडी के मुंह मे ऐसी अनहोनी बात सुन कर उन्होंने उस पर कुछ विचार न किया और उसे मच्चा मान कर अपने पापे से बाहर हो गये नही, प्रभाकरसिंह तो ऐसे न थे परन्तु प्रेम ने उनका हृदय ऐसा बना दिया था कि इन्दु के विषय मे ऐसी बातें मुन कर वे अपने चित्त को सम्हाल नहीं सकते थे। प्रेम का अगाध समुद्र थोडी ही सो प्राच लगने से मूब सकता है और प्रेमी का मन-मुकुल जरा हो नी टेन लगने से चक्नाचूर हो जाता है । अस्तु जो हो प्रमाकरनिह के दिल को उस समय क्या अवस्था धो वे ही ठीक जानने होगे या उनको देख कर रामदास पुध मुछ समझना होगा क्योकि वह उनके सामने बैठा हमा
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