वह वहाँ का और कोई स्थान नहीं देख सका जिसमे कला और विमला रहती थी या जहां जख्मी इन्दुमति का इलाज किया गया था, और न वहाँ का कोई भेद ही भूतनाय को मालूम हुआ। वह केवल अपने दुश्मनो को मार कर उस घाटी के बाहर निकल पाया और फिर कभी उसके अन्दर नहीं गया । मगर प्रभाकरसिंह को उस घाटी का बहुत ज्यादा हाल मालूम हो गया था। कुछ तो उन्होने बीच वाले वगले की तलाशी लेते समय कई तरह के कागजो पुर्जो और कितावो को देख कर मालूम कर लिया था
और कुछ कला विमला ने बताया था और वाकी का भेद इन्द्रदेव ने बता कर आजआज रभाकरसिंह को खूब पक्का कर दिया था।
आज प्रात काल सूर्योदय के ममय उम घाटी में प्रभाकर सिंह को एक
पत्थर को चट्टान पर बैठे हुए देखते है । उनके बगल में ऐयारी का बटुना
लटक रहा है और हाय पे एक छोटी सी किताव है जिसे वे बडे गौर मे
देख रहे है। यह किताव हाथ की लिखी हुई है और इनके अक्षर वहुत हो
वारीफ है तथा इसमें कई तरह के नक्शे भी दिखाई दे रहे है जिन्हें वे वार
वार उलट कर देखते हैं और फिर कोई दूसरा मजमून पटने लगते है ।
इस काम में उन्हें कई घन्टे बीत गए । जव धूप का तेजी ने उन्हें
परेशान कर दिया तब वे वहां से उठ खड़े हुए तथा वडे गौर से दरिसन
और पश्चिम कोरण की तरफ देखने लगे और कुछ देर तक देखने के बाद
उसो तरफ चल निकले। नीचे उतर कर मैदान एतम करने के बाद जव
दयिसन और पश्चिम कोण वाली पहाडी के नीचे पहुंचे तब इधर उपर
बरे गौर से देव कर उन्होने एक पगटटी का पता लगाया और उसी सीध
पर चलते हुए पहाटी के ऊपर चढ़ने लगे । करीव करीव पचास साठ कदम
चले जाने के बाद उन्हें एक छोटी सी गुफा मिली और वे लापरवाही के
साप उन गुप्ता के अन्दर चले गये ।
यह गुफा बहुत बरी न थी और इसमें केवल दो आदमी एफ साय
मिल कर चल सकते थे, फिर भी केंचाई इसकी ऐसा कम न थी कि इसके
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