. भूतनाथ 1 तक न मिनी और अन्त में वह लाचार होकर नागर के मकान में लौट पाया। माने पर उसने देखा कि बाबू साहव वहा नही है कही चले गये। तब उसने उस लिफाफे की खोज की जो नकाबपोश उसके सामने फेंक गया था और देखना चाहा कि उसमें क्या लिखा हुआ है। लिफाफा वहां मौजूद न देख कर भूतनाथ ने नागर से पूछा, "क्या वह लिफाफा तुम्हारे पास है?" नागर० । हां तुमको उस नकावपोश के पोछे जाते देख मै भी तुम्हारे पोछे पीछे सीढियाँ उतर कर फाटक तक चली गई थी, जब तुम दूर निकल गये तव में वापस लौट आई और देखा कि बाबू साहब उस लिफाफे को खोल कर पढ रहे हैं । मुझको उसकी ऐसी नालायकी पर क्रोय चढ आया और मैंने उसके हाथ से वह चीठी छीन कर बहुत कुछ बुरा भला कहा जिस पर वह नाराज होकर यहां से चला गया । भूतनाय० । यह बहुत ही बुरा हुया कि उसने यह चोठी पढ़ ली । फिर तुमने उसे जाने क्यो दिया ? मै उसे बिना ठोक किये कभी न रहता और बता देता कि इस तरह की बदमाशी का क्या नतीजा होता है । नागर० । सैर अगर भाग भी गया तो क्या हर्ज है, जब तुम उसे सजा देने पर तैयार हो हो जानोगे तो क्या वह तुम्हारे हाथ न ग्रावेगा ? भूत० । और वह चीठी कहा है जरा दिखानो तो सही ! नागर० । (खुला हुया लिफाफा भूतनाथ के हाथ में देकर) लो यह चीठी है। भूतनाय 1 (चीठी पढ कर) क्या तुमने भी यह चीठो पता है ? नागर० । नहो मगर यह सुनने की इच्छा है कि इसमें क्या लिखा है भूत० । (पुन उस चोठी को अच्छी तरह पढ के और लिफाफे को गोर से देय कर) अन्दाज मे मालूम होता है कि इस लिफाफे मे केवल यही एक चौठी नहीं बल्कि और भी कोई कागज था। नागर । शायद ऐसा ही हो और वाव साहब ने कोई कागज निकाल ?
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