तीसरा हिस्सा Ĉ - भरी निगाहो से हम दोनो का तमाशा देख रहे है । हा तो मैं क्या कह रहा था अच्छा, अब याद नाया, उसी अन्धेरी रात में एक विल्लो भी श्रा पहुँची जो अपने मुह मे लम्बी गर्दन वाला स्याह रग का ऊट दवाये हुए थी और ऊट के माथे पर लिखा हुया था- "सर्वगुण सम्पन्न चाचला सेठ।" "बस बस बस " पहता हुआ मुसाफिर पीछे की तरफ हटा और कापता हुघा जमीन पर गिरने के साथ ही बेहोश हो गया। इस नए पाए हुए व्यक्ति तया इस मुसाफिर की बातचीत स सभी को आश्चर्य तो हुप्रा ही था परन्तु मुसाफिर की अन्तिम अवस्था देख कर सभी को वडा विस्मय और प्रानन्द भी हुया । इसके बाद जब मुसाफिर सौफ से बेहोश हो गया और नये प्रादमो अर्थात् चन्द्रशेखर ने वावू साहब तथा उनके साथियो को बहुत जल्द वहा से चले जाने के लिए कहा तव वे लोग इस तरह वहा से भागे जैसे वाज के झपट्टे से बची हुई चिडियाए भागती है। जब वे लोग तेजी के साथ चल कर घने मुहल्ले में पहुंचे तव उन लोगो का जो ठिकाने हुया और उन्होने समझा कि जान बची। दूसरा वयान पाठक महाशय, अब हम कुछ हाल जमानिया का लिपना मुनामिव समझते है और उस समय का हाल लिखते है जव राजा गोपालसिंह की कम्बरती का जमाना शुरू हो चुका था और जमानिया में तरह तरह की घटनाये होने लग गई थी। जमानिया तथा दारोगा और पाल वगन्ह के सम्बन्ध की बातें जो चन्द्रकान्ता नन्तति में लिखी जा चुकी है उन्हें हम रस ग्रन्य में बिना पारण लिपना उचित नहीं समझते, उनके अतिरिक्त और जो वातें हुई है उन्हें लिखने की इच्छा है, हा यदि मजबूरी ने कोई जरुरत प्रा ही पडेगी तो बेशक पिछली बातें संक्षेप के साथ दोहराई जायगी और राजा गोपाल-
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