भूतनाथ , इस आदमी की सूरत शक्ल का अदाजा नही मिल सकता था क्योकि इसका तमाम वदन स्याह कपडे से छिपा हुआ था और चेहरे पर भी स्याह नकाव पड़ी हुई थी, मगर वह मुसाफिर उसकी बात सुन कर बड़े गौर में पड गया और प्राश्चर्य के साथ उसकी तरफ देखने लगा। मुसाफिर० । तुम कौन हो, पहिले अपना परिचय दो तव मैं तुमसे सुछ वात करू। नया० । तुम्हारा मुह इस योग्य नहीं है कि मुझसे बात करो, और परिचय के लिये यही काफी है कि मेरा नाम चन्द्रशेखर है। लेकिन अगर इससे भी विशेप कुछ जानने की इच्छा हो तो मैं और भी कुछ कहने के लिये तैयार हू । श्राह, वह धोखा देने वाली चादनी रात । वात की बात में चन्द्रमा वादलो में छिप गया और अधकार हो जाने के कारण तरह तरह की भयानक सूरतें दिखाई देने लगी। उसी समय पहिले एक स्याह रग का ऊट दिखाई दिया जिसके सिर पर लम्बे लम्बे सीघ विजली की तरह चमक रहे थे। मुसाफिर० । (डर के मारे कापता और पीछे की तरफ हटता हुआ) वस वस वस ! मैं समझ गया कि तुम कौन हो ॥ चन्द्रशेखर० । उसके बाद एक सफेद रंग का हाथो दिखाई दिया जिसके ऊपर नागर और मनोरमा मशाल लिये चढो हुई थी और जोर जोर से श्यामलाल को पुकार रहो थी क्योकि वे चाहती थी कि किसी तरह खून से लिखी हुई किताव उनके हाथ लगे। मुसाफिर० । (हाथ जोड कर) मैं कह चुका और फिर भी कहता हूं कि वस करो, माफ करो, दया करो, मैं तुम्हे पहिचान गया, अगर तुम्हें कुछ कहना हो हो तो किनारे चल कर कहो जिसमें कोई तीसग न सुनने पावं। चन्द्रशेखर० । नहीं नहीं, मैं इसी जगह सब के सामने ही कहूँगा क्योकि इन वाबू साहब का इस मामले में बहुत ही घना सम्बन्ध है और इनके साथी लोग भी इसी जगह माकर इकट्ठे हो गय है और पाश्चर्य
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