भूतनाथ ११४ बिमला इन्दुमति मोर रामदास का भी यहाँ नामोनिशान न था। कमर बरावर मुलायम और गुदगुदी घास कुएं की तह में जमी हुई थी जिस पर खडे होकर भूतनाथ ने सोचा कि कोई मादमी ऊपर से इस घास पर गिर कर चुटोला नहीं हो सकता, मतएव निश्चय है कि कला बिमला और इन्दुमति मरी न होंगी, मगर माश्चर्य है कि यहां उनमें से एक भी नजर नहीं पाती मोर न रामदास हो का कुछ पमा है । उस कूप की तह में बिल्कुल ही अन्धकार था इसलिये मच्छी तरह देखने दूदने मोर नांच करने के लिए भूतनाथ ने अपने ऐयारी के बटुए में से मोमबत्ती निकाल कर रोशनी की और बडे गौर से चारो तरफ देखने लगा। अन्दर से वह कूमा यहत पौड़ा था और उसकी दीवारें संगीन थीं। जब कोई मादमी वहा नजर न भाया तब भूतनाथ ने उस घास के अन्दर टटोसना और ढूंढ़ना शुरू किया मगर इससे भी कोई काम न चला, हां दो वायें जरूर ताज्जुब को वहां दिखाई पडौं । एक तो उस कूए की दीवार में से ( चारो तरफ से ) थोडा थोड़ा पानी टपक कर तह में भा रहा था जिससे सिर्फ वहां की घास जो एक अजीब किस्म को थी बराबर सर और ताजा बनी रहती थी, दूसरे छोटे छोटे दो दर्वाजे भी दीवार में दिखाई दिये जो एक दूसरे के मुकाबले में थे। भूतनाथ बडे ही भाश्चर्य से उन दोनों दर्वाजों को देख रहा था क्योकि जब वह कूए में इधर उधर घूमता वो कभी कोई दर्वाजा (उन दोनों में से। बंद हो जाता पोर कोई खुल जाता । मगर जब वह कुछ देर तक एक ही जगह पर स्थिर भाव से खड़ा रह जावा तव वे दर्वाजा भी ज्यो के त्यो एक ही ढग पर कायम रह बाते अर्थात् जो खुल जाता वह खुला ही रह जाता भौर जो बन्द होता वह बन्द ही रह जाता। मस्तु भूतनाथ ने समझा कि इन दर्वाजो के खुलने मौर घन्द होने के लिये वहां की जमीन हो में कदाचित् कोई कमानी लगी हुई है । वह बहुत देर तक इधर उधर घूम घूम कर इन दर्वाजो के खुलने पोर बन्द होने का तमाशा देबता रहा। -
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