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दूसरा भाग हू बँध लीजिये पयोकि भर में वाहर पाने की इच्छा नहीं करता।' रामदास की बात सुन कर भूतनाथ को बना ही प्राश्चर्य हया और जब उसने कमन्द खैच पर देखा तो वास्तव में उसे ढोला पाया। सोलहवां वयान घोरे पोरे विल्कुल कमन्द खिच कर भूतनाथ के हाथ में पा गया और तब वह वही ही वेचनी के साथ फूए के अन्दर झांक कर देखने लगा मगर अन्धकार के अतिरिक्त भोर मुछ दिखाई नहीं दिया। रामदास भूतनाथ का बहुत ही प्यारा शागिर्द था और साथ हो सके भूतनाथ को उस पर विश्वास भी परले सिरे का पा। इस मौके पर हरदेई को सूरत में जो कुछ काम उसने किया था उससे भूतनाथ महत प्रसन्न था और समझता था कि मेरा यह होनहार शागिर्द नि.सन्देह किसी दिन मेरा ही स्यरूप हा जायगा । वल इतना ही नहीं, जिस तरह भूतनाथ उसे लड़ये के समान मानता था उसी तरह रामदास भी भूतनाथ को पिता-तुल्य मानता पा, भरतु ऐसे रामदास का इस तरह कूए के अन्दर जाकर वेमुरोवत हो जाना कोई मामूली यात न थी । इससे भूतनाथ को वडा ही मधमा हुमा और उसने ऐसा समझा कि मानो पला पलाया मोर दुनिया में नाम पैदा करने वाना बराबर फा लडफा जिसे निधिरप समझता था हाथ से निकला जारहाँ है । भूतनाथ इस सदमे को बर्दाश्त नहीं कर सकता था पोर उसमे यह नही हो ममता पाफि रामदास को ऐसो भवस्पा में छोट कर वहां से चला जाय। कुछ देर तक सोचने और विचारने के बाद भूतनाथ ने कमन्द का एक सिरा पत्थर को साथ प्रहाया पौर तव पुद भी उसी के सहारे नीचे उतर गया भूतनाथ को रिष्यास पा कि कुएं के नीचे या तो पानी होग या बिल्कुल सूरी में कना विमला मोर इन्दुमति की नारा पाचंगे पौर यहीं अपने पारे शागिर्द रामदाम को भी देखेंगे मगर ये सब कुछ भी बातें न दी । न तो यह पूंपासूखा था पोर न उसमें पानी ही दिखाई दिया। इसी तरह कमा