भूतनाथ ११२ उन दोनों को कू ए मे ढकेल देने के बाद रामदास दौडा हुप्रा गया और इन्दुमति को उठा लाया । भूतनाथ ने उसे भी कूए के अन्दर ढकेल दिया और फिर पत्थर से उसका मुह उसी तरह ढाक दिया जैसा पहिले था इस काम से छुट्टी पाकर भूतनाथ और रामदास ने यह सोचा कि अब बाकी की औरतें जो इस घाटी में मौजूद है उन्हें भी मार कर बखेडा तय कर देना चाहिये क्योंकि इनमें से अगर एक भी जीती रह जायगी तो भण्डा फूटने का डर लगा ही रह जायगा, अस्तु यह निश्चय किया गया कि उन सभों के लिये कोई दूसरा कूमा खोजना चाहिए, क्योकि जिस कूर में जमना और सरस्वती तथा इन्दु को डाला है उनके अन्दर घुस कर देखना उचित है कि उसमें पानी है या नही अथवा उसके अन्दर का क्या हाल है। आखिर ऐसा ही हुप्रा । उस कुएं से थोडो दूर पहाड के कुछ ऊपर चढ़ कर एक कूमा और था जिसका मुंह बहुत चौडा था। भूतनाथ पोर रामदास दोनो आदमी सव बेहोश लोहियो को बगले के भन्दर भोर बाहर से उठा लाये और एक एक करके उस कूए के अन्दर डाल दिया। प्राह, भूतनाथ का कैसा कडा कलेजा था और यह कैसा घृणित कार्य उसने किया। सव उस घाटी के अन्दर कोई भी न रहा जो इन दोनो की खबर ले। अब सवेरा हो गया बल्कि सूर्य भगवान मी उदयाचल से निकल कर अपनी पाखो से भूतनाथ और रामदास के कुकर्म देखने लगे । भूतनाथ और रामदास उस कूए पर आये जिसमें जमना सररवती और इन्दुमति को ढकेल दिया था। भूतनाथ ने रामदास से कहा कि तू कमन्द के सहारे इस कूए के अन्दर उतर जा पोर देख कि इसमें पानी है या नहीं। भूतनाथ को भाज्ञानुसार रामदास कमन्द थाम कर उसके अन्दर उतर गया । कमन्द का दूसरा सिरा भूतनाथ ने एक पत्थर से मजबूती के साथ मटा दिया था। रामदास ने नीचे माकर अावाज दो-"गुरुजी, यह कूमा इस लायक नहीं था कि इसके पन्दर दुश्मनों को डाला जाता बल्कि यह तो -स्वर्ग से भी बद कर सुख देने वाला है। लीजिए अब कमन्द को छोडता .
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