भूतनाथ | २४ |
उसके साथ भूतनाथ की घाटी में जा रहे है वह वास्तव में प्रभाकरसिंह नही है बल्कि उनके दुश्मनो मे से एक ऐयार है जिसका खुलासा हाल आगे के किसी बयान में मालूम होगा, वह उसे तथा भूतनाथ और उसके ऐयारो को धोखा दिया चाहता है और इन्दुमति पर भी कब्जा कर लेने की धुन में है । यद्यपि भोलामिह भी ऐयार है और बुद्धिमान है मगर साथ ही इसके उसे भाग का बहुत शौक है। सुबह दोपहर और शाम तीनो वक्त छाने बिना उसका जी नही मानता । इतने पर भी इस न्ही, कभी कभी वह नशे की कमी समझ कर दो चार दम गाजे के भी लगा लिया करता है और यही सवव है कि वह कभी कभी वेढब धोखा खा जाता है । मगर यह ऐयार भी वडा ही मक्कार है जो उसके साथ जा रहा है, देखा चाहिए दोनो में क्योकर निपटती है । भोलासिंह तो खुश है कि हमने प्रभाकरसिंह को खोज निकाला, और वह ऐयार सोचता है कि अब इन्दुमति पर कब्जा करना कोन वडी बात है।
कुछ देर के बाद दोनो प्रादमी उठ खडे हुए और भोलासिह उस नकली प्रभाकरसिंह को साथ लिए हुए सुरग के अन्दर चला गया।
तीसरा वयान
इन्दुमति वडे हो सकट में पड गई है। प्रभाकरसिंह का इस तरह यकायक गायव हो जाना उसके लिए वडा ही दुख दायी हुआ । इस समय उसके प्रागे दुनिया अन्धकार हो रही है। उसे कही भी किसी तरह का महाग नही मूझता। उसको समझ में कुछ भी नही पाता कि अब उसका भविष्य कैसा होगा । उसे न तो तनोवदन की सुध है और न नहाने घोने की फिर। वह सिर झुकाए अपने प्यारे पति की चिन्ता में हवी हई है। गुनामिह उसके पास बैठे हुए तरह तरह की बातो से उसे सन्तोप दिनाना चाहते है मगर पिसी तरह भी उसके चित्त को शान्ति नहीं होती पौर वह अपने मन को दो चार गतें कह कर चुप हो जाती है। हा जव जर उनके कान में ये शब्द पट जाते है कि 'भूतनाथ का उद्योग कदापि