२३ | पहिला हिस्सा |
निश्चय है कि आप जरूर मेरे दोस्त भूतनाथ के ऐयार है जिनसे सिवाय भलाई के बुराई को आशा हो ही नही सकती।
भोला० । (कुछ सोच कर) वात तो वेशक ऐसी ही है, मैं जरूर भूतनाथ का ऐयार हू और वे आपका पता लगाने के लिए गए हैं मगर यह तो बताईए कि आप यकायक गायव क्यो हो गए और आपको ऐसी दशा किसने की है ?
प्रभा० । मै यह सव हाल तुमसे वयान करूंगा और यह भी बताऊंगा कि क्योकर मेरी जान बच गई, मगर इस समय नहीं क्योकि दुश्मनो के हाय से तकलीफ उठाने के कारण मै बहुत ही कमजोर हो रहा है और अब मुझमें ज्यादा बात करने की भी ताकत नहीं है, अस्तु जिस तरह हो सके मुझे अपने डेरे पर ले चलो, वहा सब कुछ सुन लेना और उसी समय इन्दुमति तथा मुलावसिंह को भी मेरा हाल मालूम हो जायगा । यद्यपि मुझमें चलने की ताकत नहीं है मगर तुम्हारे मोढे का सहारा लेकर धीरे धोरे वहा तक पहुच हो जाऊंगा।
भोला० । अच्छी बात है, मै तो आपको अपनी पीठ पर लाद कर भी ले जा सकता है।
प्रभा० । ठीक है मगर इसकी कोई जम्करत नहीं है, अच्छा अब अपना नाम तो बता दो।
भोला० । मेरा नाम भोलासिंह है।
इतना कह के भोलासिंह उठ खडा हुया और उसने हाथ का सहारा देकर प्रभाकरसिंह को भी उठाया। वह बहुत ही सुस्त और कमजोर मालूम हो रहे थे इसलिये भोलासिंह उन्हें टेकता और महारा देता हुआ बडो कठिनता से मुरग के मुहाने पर ले आया । वहा पर प्रभाकरसिंह ने बैठ कर कुछ देर तक सुस्ताने की इच्छा प्रकट को अस्तु उन्हें बैठा कर भोलासिंह भी उनके पास बैठ गया। इस ममय दिन पहर भर के लगभग रह गया होगा।
माह ! यहाँ पर भोलामिह ने वेठव घोसा खाया। यह जो प्रभाकरसिंह