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दुसरा भाग
 

घाटी में नहीं रहता, न मालूम वह कहीं चला गया या उसने जगह बदल दी। बहुत दिनो तक उनकी लौंडिया घोर ऐयारा इस विषय का पता लगाने के लिए इधर उधर दौडती रही मगर सफल मनोरथ न हो सकी । कुछ दिन बीत जाने के बाद यह मालूम हुआ कि भूतनाथ अपने मालिक रणवीरसिंह के वहां चला गया तथा प्रब बरावर एकाग्रचित्त से उन्ही का काम किया करता है और उन्ही के यहा स्थिर भाव से रहता है । यह बात इन दोनो को अच्छी नही मालूम हुई और इन दोनो ने समझा कि प्रव भूतनाथ से बदला लेना कठिन हो गया तथा अव विना प्रकट भये काम नही चलेगा। कई दिनों तक इन दोनो ने सोचा कि रणधोरसिंह के यहा चला जाय, और जो कुछ मामला हो चुका है उसे माफ साफ कर के भूतनाथ को सजा दिलावें, परतु इन्द्रदेव ने ऐसा करने से मना किया और समझाया कि अगर तुम बहा चलो जाओगी तो रणयोरसिंह मुझपे इस बात के लिए रन्ज हो जायगे कि मैंने इतने दिनो तक तुम दोनों को छिपा रखा और झूठ को मशहूर कर दिया कि जमना ओर सरस्वती मर गई, साथ ही इसके कहने पर तनाव में भी सुल्लम लडाई हो जाएगी । केवल इतना ही नहीं बल्कि यह मोच रखना चाहिये कि रणधीरसिंह भूतनाथ का कुछ बिगाड़ न सकेंगे, सिवाय इसके कि उसे अपने यहां से निकाल दें,बल्कि ताज्जुब नही कि भूतनाथ रणधीरसिंह से रंज होकर उन्हें भी किसी तरह की तकलीफ पहुंचाए। इन्द्रदेव का यह विचार भी बहुत ठीक था, दमन्तए वे दोनो बहुत दिनो तक चुपचाप बैठी रह गई और रणपोरसिंह के यहां भी न गई।

इसी तरह सोचते विचारते और समय का इन्तजार करते वर्षों वीत गये ओर इस बीच में जमना सरस्वती ओर इन्दुमति प्राय. घूमने फिरने के लिए उस घाटी के बाहर निकलती रही।

एक दिन माघ के महीने में दोपहर के समय अपनी कई लोंडियो को गाय लिए हुए ये दोनो भेष बदले हुए उस घाटी के बाहर निकली ओर जंगल में चारो तरफ घूम फिर फर दिल बहलाने लगी। यकायक उनकी निगाह एक